पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान एक तरह से तालिबान के ब्रांड एम्बेसडर बन गए हैं. अंतरराष्ट्रीय मंच पर तालिबान को एंट्री दिलाने की कोशिशों के साथ-साथ वो इंटरनेशनल मीडिया में आर्टिकल भी लिख रहे हैं. इमरान का कहना है कि तालिबान की वित्तीय मदद करना जरूरी है, ताकि अफगानिस्तान की नई सरकार अपने किए गए वादों को पूरा कर सके.
इतना ही नहीं, पाकिस्तानी पीएम ने दुनिया को डराते हुए यह भी कहा कि अगर हमने तालिबान को मदद नहीं की तो इससे अफगानिस्तान में अराजकता और आतंकवाद फैलेगा.तालिबान को अब तक अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है.
तालिबान ने 1996 से 2001 तक अपने पूर्व के शासन की तुलना में इस बार समावेशी सरकार और उदार इस्लामिक कानून अपनाने का वादा किया है. हालांकि, काबुल पर कब्जे के बाद से तालिबानी क्रूरता की खबरें हर रोज सामने आ रही है. खासकर महिलाओं के प्रति तालिबान अपने पुराने रुख पर लौट आया है.
एक आधिकारिक बयान के अनुसार इमरान खान ने अमेरिका के वाशिंगटन पोस्ट अखबार में प्रकाशित लेख में कहा कि दुनिया एक समावेशी अफगान सरकार, अधिकारों के लिए सम्मान की भावना और प्रतिबद्धताओं को पूरा किए जाने की इच्छा रखती है. यह भी कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए फिर कभी नहीं किया जाएगा.
लेख में इमरान खान ने लिखा है तालिबान नेताओं के पास अपने वादों पर टिके रहने के लिए अधिक कारण और क्षमता होगी, क्योंकि उन्हें सरकार का प्रभावी ढंग से संचालन करने के लिए लगातार मानवीय मदद और विकास की आवश्यकता है.
वित्तीय मदद प्रदान करने से दुनिया को तालिबान को अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने के लिए राजी करने से अतिरिक्त लाभ मिलेगा.पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो हम दोहा शांति प्रक्रिया का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.एक ऐसा अफगानिस्तान जो अब दुनिया के लिए खतरा नहीं होगा, जहां अफगान नागरिक आखिरकार चार दशकों के संघर्ष के बाद अमन-चैन का ख्वाब देख सकते हैं.
उन्होंने धमकाने वाले अंदाज में यह भी कहा कि अफगानिस्तान को पहले की तरह अपने हाल पर छोड़ देने से मंदी आएगी. अराजकता, बड़े पैमाने पर पलायन और आतंकवाद के फिर से पनपने का खतरा होगा. इससे बचना निश्चित रूप से हमारी वैश्विक अनिवार्यता होनी चाहिए.