युद्ध रोकने पर आर्मेनिया और अजरबैजान में बनी सहमति

कोरोना संकट के बीच दुनिया पर मंडरा रहा विश्व युद्ध का खतरा रूस के प्रयासों से टल गया है. अर्मेनिया और अजरबैजान पिछले कई दिनों से जारी युद्ध रोकने पर सहमत हो गए हैं. आज दोपहर से दोनों तरफ से गरज रहीं तोपें खामोश हो जाएंगी.

यदि दोनों देशों में सहमति नहीं बनती तो आने वाले दिनों में स्थिति विकराल हो सकती थी, क्योंकि कई देश इस लड़ाई में कूदने की तैयारी कर रहे थे.विवादित क्षेत्र को लेकर अर्मेनिया और अजरबैजान में छिड़ी जंग को खत्म करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों को मॉस्को आमंत्रित किया था.

दोनों पक्षों में हुई मैराथन बातचीत के बाद आखिरकार युद्ध रोकने पर सहमति बन गई है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बताया कि अर्मेनिया और अजरबैजान मानवीय आधार पर युद्ध समाप्त करने पर सहमत हो गए हैं. 10 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे से दोनों देश युद्ध विराम को लागू कर देंगे.

लावरोव के मुताबिक, दोनों देश एक-दूसरे के कैदियों और संघर्ष में मारे गए लोगों के शवों का आदान-प्रदान करेंगे. मॉस्को में आयोजित वार्ता में मध्यस्थता करने वाले लावरोव ने यह भी कहा कि अर्मेनिया और अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख विवाद के निपटारे के लिए भी बातचीत शुरू करने पर सहमति दर्शाई है.

वैसे, तो यह दो देशों के बीच की लड़ाई थी, लेकिन इसमें कई देश शामिल होने की तैयारी कर रहे थे. तुर्की ने तो पहले ही अजरबैजान की तरफ से मोर्चा संभाल लिया था. जिस तरह से टेंशन बढ़ती जा रही थी, उसे देखते हुए यह आशंका पैदा हो गई थी कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तुर्की के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं.

यदि ऐसा होता तो रूस और तुर्की के बीच भयानक जंग शुरू हो जाती और इस महायुद्ध में दुनिया की दूसरी महाशक्तियां भी शामिल होतीं. यह भी खबर थी कि पाकिस्तानी सेना भी इस युद्ध में भूमिका निभा रही है.

इतना ही नहीं, अर्मेनिया और अजरबैजान की लड़ाई में फ्रांस, ईरान और इजराइल के भी शामिल होने का खतरा बढ़ गया था. लेकिन रूस ने तुर्की के उकसावे के बावजूद संयम से काम लिया और दोनों देशों को बातचीत की मेज पर लाकर दुनिया को विश्वयुद्ध के खतरे से बचा लिया.

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