ब्रिटेन के न्यायाधीश ने 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का आदेश दिया है, ताकि इस घटना में ब्रिटिश सरकार की भागीदारी और साफ तौर पर जाहिर हो सके. साथ ही अदालत ने ब्रिटिश सरकार की यह दलील खारिज कर दी कि इस कदम के चलते भारत के साथ राजनयिक संबंधों को नुकसान पहुंचेगा.
लंदन में मार्च में फर्स्ट टियर ट्रिब्यूनल (सूचना अधिकार) की तीन दिवसीय सुनवाई की अध्यक्षता करने वाले न्यायाधीश मुरी शैक्स ने कहा कि उस समय की ज्यादातर फाइलें अवश्य ही सार्वजनिक की जानी चाहिए.उन्होंने ब्रिटिश सरकार की यह दलील खारिज कर दी कि डाऊनिंग स्ट्रीट के कागजात को सार्वजनिक करने से भारत के साथ राजनयिक संबंधों को नुकसान पहुंचेगा.
हालांकि, न्यायाधीश ने स्वीकार किया कि ब्रिटेन की संयुक्त खुफिया समिति के पास मौजूद इंडिया: पॉलीटिकल नाम की एक फाइल में कुछ ऐसी सूचना हो सकती है जो ब्रिटिश जासूसी एजेंसी- एमआई 5 एमआई 6 और सरकार संचार मुख्यालय से जुड़ी हो. न्यायाधीश के आदेश में कहा गया है हम जिस अवधि की बात कर रहे हैं वह भारत के हालिया इतिहास में एक बहुत ही संवेदशील समय का है.
यह भी याद रखना चाहिए कि 30 साल गुजर गए हैं. दरअसल, नियमों के मुताबिक इस तरह की फाइलों को वहां 30 साल के बाद ही सार्वजनिक किया जा सकता है. साल 2014 में ब्रिटेन की सरकार ने कुछ दस्तावेज सार्वजनिक किए थे जिससे इस बात का खुलासा हुआ था कि ब्रिटिश सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले भारत की सेना को सलाह दी थी.
यूके कैबिनेट कार्यालय को फर्स्ट टियर ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील के लिए 11 जुलाई तक का वक्त दिया गया है. उसे संबद्ध दस्तावेज अध्ययन के लिए 12 जुलाई तक स्वतंत्र पत्रकार फिल मिलर को उपलब्ध कराने होंगे. मिलर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में किए गए ऑपरेशन में मार्गरेट थैचर नीत तत्कालीन सरकार द्वारा थल सेना (भारतीय) को दी गई सहायता की प्रकृति की जांच कर रहे हैं.