अफगानिस्तान में हुए आतंकी हमले में 10 पत्रकारों समेत कम से कम 37 की मौत

अफगानिस्तान में कई आतंकी हमलों में 10 पत्रकारों सहित कम से कम 37 लोगों की मौत हो गयी. मरने वाले पत्रकारों में काबुल में एएफपी के मुख्य फोटोग्राफर शाह मराई भी शामिल हैं.  वर्ष 2001 में तालिबान के पतन के बाद से अफगानिस्तान में मीडिया पर एक दिन में किया गया यह सर्वाधिक घातक हमला है.

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार काबुल में दो आत्मघाती हमले में 25 लोग मारे गए. मरने वालों में मराई समेत कम से कम आठ अन्य पत्रकार शामिल हैं.  हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट समूह ने ली. संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ समेत विभिन्न समूहों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमले की निंदा की.

अफगानिस्तान के पत्रकारों में शोक की लहर फैल गई. कई पत्रकारों ने टि्वटर के जरिये अपने सहकर्मियों और मित्रों को श्रद्धांजलि दी.काबुल पुलिस प्रवक्ता हशमत स्तानिकजई ने बताया कि दूसरा धमाका पहले विस्फोट के कुछ मिनट बाद हुआ. इसके जरिये घटनास्थल पर मौजूद पत्रकारों को निशाना बनाया गया.

उन्होंने बताया हमलावर पत्रकार के रूप में आया था और भीड़ के बीच उसने खुद को विस्फोट में उड़ा लिया. गृह मंत्रालय ने मरने वालों की संख्या की पुष्टि की है. उसने बताया कि हमलों में 49 लोग घायल हुए हैं. उसने आशंका जताई कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है.

बाद में बीबीसी ने पुष्टि की कि पाकिस्तान सीमा से लगे पूर्वी खोस्त प्रांत में एक अलग हमले में उसके संवाददाता 29 वर्षीय अहमद शाह मारे गए हैं. बीबीसी ने इस बारे में फिलहाल और कोई विवरण नहीं दिया है.अधिकारियों ने बताया कि तीसरे हमले में 11 बच्चे मारे गए और विदेशी और अफगान सुरक्षा बल के सदस्यों समेत 16 लोग घायल हुए हैं.

यह हमला दक्षिणी प्रांत कंधार में एक काफिले के निकट विस्फोटकों से भरी कार में एक आत्मघाती हमलावर ने विस्फोट को अंजाम देकर किया.  इस हमले की फिलहाल किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है. इसके साथ ही देशभर में मरने वालों की संख्या बढ़कर 37 हो गई. 

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने बताया कि काबुल में हुए हमले में मरने वालों रेडियो फ्री यूरोप और अफगान प्रसारकों टोलो न्यूज, 1 टीवी समेत अन्य मीडिया संगठनों के पत्रकार शामिल हैं. एएफपी के सीईओ फैब्रिस फ्राइज ने कहा यह त्रासदी जमीन पर और लोकतंत्र में अनिवार्य भूमिका निभाने वाले पत्रकारों को जिन खतरों का लगातार सामना करना पड़ता है, उसकी याद दिलाती है.

मराई का शव आज दफना दिया गया.वह 1996 में एएफपी में बतौर चालक शामिल हुए थे. इसी वर्ष तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया था. उसके बाद उन्होंने तस्वीरें लेनी शुरू कर दीं. उन्होंने 2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले को भी कवर किया था.  2002 में वह एएफपी के पूर्णकालिक स्ट्रिंगर हो गए और उसके बाद ब्यूरो में मुख्य फोटोग्राफर बन गए.

दूसरे हमले से कुछ ही क्षण पहले उन्होंने व्हाट्स ऐप करके एएफपी के अपने वीडियो सहकर्मियों को चिंता नहीं करने को कहा था. उनके साथी यातायात में फंस गए थे और घटनास्थल पर नहीं पहुंच सके थे. उन्होंने अपने संदेश में कहा था चिंता की कोई बात नहीं. मैं यहां हूं. उन्होंने कहा था कि वह फोटो लेने के अतिरिक्त वीडियो भी शूट कर रहे हैं.

उनके परिवार में एक नवजात बेटी समेत छह बच्चे हैं. एएफपी के वैश्विक समाचार निदेशक मिशेल लेरिडॉन ने कहा यह हमारे काबुल ब्यूरो और समूची एजेंसी के लिये बड़ा झटका है. उन्होंने कहा हम इस आतंकवादी हमले में मरने वाले अन्य पत्रकारों के परिजन के प्रति भी संवेदना प्रकट करते हैं. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने बताया कि 2016 से अफगानिस्तान में 34 पत्रकार मारे गए हैं. प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में अफगानिस्तान 118 वें स्थान पर है.

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