अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का 11 दिन का एशिया दौरा पांच नवंबर से शुरू हो रहा है। इस दौरान वे जापान, साउथ कोरिया, चीन, वियतनाम और फिलीपींस जाएंगे। इस दौरे पर ट्रम्प के एजेंडे में सबसे ऊपर नॉर्थ कोरिया की चुनौती से निपटने के लिए डिप्लोमैटिक और स्ट्रैटजिक जमीन तैयार करना है। वे हवाई होते हुए सबसे पहले जापान पहुंचेंगे।
बता दें कि नॉर्थ कोरिया को घेरने के लिए ट्रम्प उसके पड़ोसी देशों में जा रहे हैं। नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर लेफ्टिनेंट जनरल एचआर मैकमास्टर ने कहा कि ट्रम्प के पहले एशिया दौरे का मकसद पुराने सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करना और इंडिया-पैसिफिक रीजन में नए संबंध बनाना है। ट्रम्प नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर खतरे को लेकर इंडिया-पैसिफिक रीजन के नेताओं से बातचीत करने आए हैं।
प्रेसिडेंट बनने के बाद उन्होंने कई देशों के नेताओं से 43 बार फोन पर बात की है। उन्होंने जापान, साउथ कोरिया, चीन, भारत समेत 10 देशों से बाइलेटरल चर्चा भी की है। वे 10 से ज्यादा देशों के दौरे पर भी जा चुके हैं।26 साल बाद कोई अमेरिकी प्रेसिडेंट इतनी लंबी एशियाई देशों की यात्रा करेगा। ट्रम्प से पहले 1991 में तब राष्ट्रपति रहे जॉर्ज बुश 12 दिन के एशियाई दौरे पर आए थे। वे जापान में बीमार पड़ गए थे।
अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प हवाई होते हुए एशिया आ रहे हैं। ट्रम्प का यह टूर दशकों में सम्पन्न होने वाला चतुराई भरा राजनयिक दौरा है।ट्रम्प 10 दिन साउथ ईस्ट एशिया में रहेंगे। 1 दिन चीन में, 4 दिन तो वे अपने दो अहम सहयोगियों जापान और साउथ कोरिया के साथ रणनीति बनाएंगे। 9 नवंबर को शी जिनपिंग से मुलाकात होगी।
ट्रम्प चीन के अलावा चार में से उन दो देशों में जा रहे हैं, जिनका चीन से साउथ चाइना सी को लेकर विवाद है। चीन यह नहीं चाहेगा कि अमेरिका नॉर्थ कोरिया को आतंकी घोषित करे।चूंकि ट्रम्प की फॉरेन पॉलिसी अनिश्चितता भरी रही है, ऐसे में साउथ कोरिया और जापान का उन पर विश्वास करना मजबूरी है। वहीं, वियतनाम और फिलीपींस ऐसा करेंगे, यह कहना मुश्किल है।
ऐसे में लगता नहीं कि ट्रम्प कुछ खास लेकर लौटेंगे। हां, व्हाइट हाउस यह चाहता है कि नॉर्थ कोरिया को आतंकी राष्ट्र करार दे। मुझे लगता है कि एशिया-प्रशांत नए रणनीतिक गेम का क्षेत्र बन रहा है, जिसमें अमेरिका पुराने के साथ नए मित्रों को शामिल करना चाहता है।भारत और अमेरिका की अगले साल की शुरूआत में टू-प्लस-टू वार्ता होनी है। भारत को अमेरिकी झांसे में आने से पहले अपने हित और हितों के क्षेत्र तय करने चाहिए।