पुराकृतयुगस्यादौ सर्वभूत हिताय च। मूर्तिमान्भगवांस्तत्रतपोयोग समाश्रिताः।। त्रेतायुगेहिऋषिगणौ योगाभ्यासैक तत्परः। द्वापरे समनुपाप्ते ज्ञान निष्ठोहि दुर्लभः।। पहले सत्ययुग में भगवान् मूर्तिमान् होकर तपस्या करते थे। त्रेता से योगाभ्यासी ऋषियों दर्शन होते थे। द्वापर आने पर ज्ञाननिष्ठ मुनियों को भी भगवान् के दर्शन दुर्भभ हो गये अर्थात् उन्हें भी भगवान् दिखाई नहीं दिये। श्री भगवान् पहिले अपने साक्षात् रूप से बदरिकाश्रम में निवास …
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