मध्यप्रदेश में 5 साल से भी अधिक समय से सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हुए हैं. हजारों अधिकारी व कर्मचारी बिना प्रमोशन लिए ही रिटायर हो गए. इस मामले में आज बड़ा फैसला आ सकता है. सरकारी पदों पर प्रमोशन पर आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होने वाली है.
एक तरफ सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला और दूसरी तरफ शिवराज सरकार ने कर्मचारियों को पदोन्नति के अवसर उपलब्ध कराने के लिए मंत्री समूह का गठन भी कर दिया है. ये कमेटी सरकारी कर्मचारियों को उनके सेवाकाल में पात्रता के अनुसार प्रमोशन के अवसर प्रदान करेगी.
यह समिति भविष्य में होने वाले प्रमोशन को लेकर अपने सुझाव देगी. इस समिति में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, वन मंत्री विजय शाह, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और राज्यमंत्री सामान्य प्रशासन स्कूल शिक्षा मंत्री स्वतंत्र प्रभार इंदर सिंह परमार शामिल होंगे.
प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रमोशन होते थे, लेकिन साल 2016 में हाईकोर्ट ने इसपर बैकलॉग के खाली पदों को कैरिफारवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान के विरुद्ध मानते हुए हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.
इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर अब तक फैसला नहीं सुनाया गया है.आज की सुनवाई में अंतिम निर्णय आने की उम्मीद है.गौरतलब है कि साल 2011 में भी हाईकोर्ट में 24 याचिकाएं दायर की गई थी. जिसमें अनारक्षित वर्ग की तरफ से अनुसूचित जाति-जनजाति को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने की बात रखी गई थी.
इनमें सरकार द्वारा बनाए मध्य प्रदेश पब्लिक सर्विसेज (प्रमोशन) रूल्स 2002 में एससी-एसटी को दिए गए आरक्षण को कठघरे में रखा गया था.जिसके बाद मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को राज्य में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के नियम को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था.