रूस में 14 जून से होने वाले फुटबॉल वर्ल्ड कप में मुकाबलों को रोचक बनाने और सटीक फैसले लेने के लिए इस बार तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा। फुटबॉल वर्ल्ड कप के 88 साल में पहली बार वीडियो रेफरल का इस्तेमाल होगा। हर मैच पर 33 कैमरों से नजर रखी जाएगी जो सीधे मॉस्को में बने सेंट्रलाइज्ड वीडियो ऑपरेशन रूम से कनेक्ट रहेंगे।
फीफा की रेफरी कमेटी ने वीडियो रेफरल के लिए 13 लोगों की वीडियो असिस्टेंट रेफरी (वार) टीम बनाई है। यह टीम वर्ल्ड कप के सभी 64 मुकाबलों में मैच अधिकारियों को सपोर्ट करेगी।वार टीम मॉस्को में एक सेंट्रलाइज्ड वीडियो ऑपरेशन रूम में बैठेगी। यह टीम सभी रिलेवेंट ब्रॉडकास्ट कैमरों को एक्सेस कर सकेगी और ऑफसाइड कैमरों से संबद्ध करेगी।
वीडियो असिस्टेंड रेफरी कोई फैसला नहीं लेंगे, बल्कि फैसला लेने की प्रक्रिया में रेफरी की मदद करेंगे। अंतिम फैसला लेने का अधिकार सिर्फ रेफरी का हो होगा।ब्रॉडकास्टर्स, कमेंटेटर्स, और इन्फोटैन्मेंट टीम फुटबॉल प्रेमियों को रिव्यू प्रक्रिया के बारे में जानकारी देगी।वार टीम 33 ब्रॉडकास्ट कैमरों को एक्सेस कर सकेगी। इसमें 8 स्लो सुपर स्लो मोशन और 4 अल्ट्रा स्लो मोशन कैमरे होंगे। इसके अलावा वे दो ऑफसाइड कैमरों को भी एक्सेस कर पाएंगे।
नॉकआउट चरण के मुकाबलों के लिए हर गोल पोस्ट के पीछे 2 अतिरिक्त अल्ट्रा स्लो मोशन कैमरे लगाए जाएंगे। इन कैमरों को भी वार टीम एक्सेस कर सकेगी।स्लो मोशन रिप्ले का मुख्य रूप से इस्तेमाल वास्तविक स्थितियां जानने के लिए किया जाएगा। वहीं सामान्य स्पीड के कैमरों का इस्तेमाल सब्जेक्टिव फैसलों के लिए किया जाएगा।
वार टीम की मदद को हर मैच के लिए 4 रिप्ले ऑपरेटर होंगे। वे कैमरे का बेस्ट एंगल चुनेंगे और उसे वार टीम को उपलब्ध कराएंगे। 4 में से 2 रिप्ले ऑपरेटर वार और वार-2 को हर चेक और घटना के रिव्यू के लिए कैमरे के सबसे संभावित एंगल को पहले से चुनेंगे और 2 रिप्ले ऑपरेटर उन्हें अंतिम एंगल उपलब्ध कराएंगे।
वार टीम के लिए रेफरियों का चयन का मानदंड मुख्य रूप से उनके अनुभव के आधार पर किया गया है। वार असिस्टेंट रेफरी चुनते समय इस पर जोर दिया गया है कि जो उम्मीदवार है, उसका अपने राष्ट्रीय और कन्फेडरेशन मुकाबलों के दौरान वीडियो मैच अधिकारी के रूप में कैसा प्रदर्शन रहा है। यह भी देखा गया कि फीफा से संबद्ध मैचों और प्रिपेरटोरी सेमिनार के दौरान उन्होंने अपनी वार नॉलेज और स्किल्स का कितना इस्तेमाल किया।
कुछ मानना है कि फुटबॉल में तकनीक के इस्तेमाल की ज्यादा जरूरत नहीं है। हालांकि 2010 फीफा वर्ल्ड कप में इंग्लैंड-जर्मनी के बीच हुए क्वार्टर फाइनल मैच के बाद हर किसी ने सवाल उठाए कि यदि वीडियो प्रूफ जैसी तकनीक का इस्तेमाल हुआ होता तो मैच का परिणाम दूसरा होता।इस मैच में इंग्लैंड की टीम जर्मनी के हाथों 4-1 से हार गई थी।
मैच के दौरान इंग्लैंड के फ्रैंक लैंपर्ड ने गेंद को जर्मनी के गोलपोस्ट में पहुंचा दिया था, लेकिन रेफरी ने उसे गोल नहीं दिया था।इंग्लैंड के तत्कालीन कोच फाबियो कापेलो ने कहा था साफ-साफ 2-2 गोल हुए थे। जो हुआ उसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था। यदि दूसरा गोल दिया गया होता तो शायद पूरा मैच ही बदल जाता। मैं इस गलती को न तो समझ और न ही माफ कर सकता हूं।