युवराज सिंह ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। युवराज ने 2011 के वर्ल्ड कप में 9 मैच में 90.50 के औसत से 362 रन और 15 विकेट लिए थे। वे उस वर्ल्ड कप में प्लेयर ऑफ द सीरीज भी चुने गए थे।2011 वर्ल्ड कप के दौरान युवराज कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे।
हालांकि, उन्होंने किसी को इस बात का पता नहीं चलने दिया। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल से पहले डॉक्टरों ने उनको नहीं खेलने की सलाह दी थी, लेकिन वे न सिर्फ मैदान में उतरे, बल्कि भारत की जीत के हीरो भी रहे। उन्होंने उस मैच में 57 रन की पारी खेली थी।
युवराज ने 40 टेस्ट की 62 पारियों में 33.92 के औसत से 1900 रन बनाए हैं। इसमें 3 शतक और 11 अर्धशतक भी हैं। उन्होंने 304 वनडे की 278 पारियों में 36.55 के औसत से 8701 रन बनाए। उन्होंने वनडे इंटरनेशनल में 14 शतक और 52 अर्धशतक लगाए हैं।
युवराज ने 58 टी-20 इंटरनेशनल भी खेले। इसमें 28.02 के औसत से 1177 रन बनाए। उन्होंने टेस्ट में 9, वनडे में 111 और टी-20 इंटरनेशनल में 28 विकेट भी लिए हैं।
संन्यास का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा मैं बचपन से ही अपने पिता के नक्शेकदम पर चला और देश के लिए खेलने के उनके सपने का पीछा किया।
मेरे फैन्स जिन्होंने हमेशा मेरा समर्थन किया, मैं उनका शुक्रिया अदा नहीं कर सकता। मेरे लिए 2011 वर्ल्ड कप जीतना, मैन ऑफ द सीरीज मिलना सपने की तरह था। इसके बाद मुझे कैंसर हो गया। यह आसमान से जमीन पर आने जैसा था। उस वक्त मेरा परिवार, मेरे फैन्स मेरे साथ थे।
उन्होंने कहा एक क्रिकेटर के तौर पर सफर शुरू करते वक्त मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी भारत के लिए खेलूंगा। लाहौर में 2004 में मैने पहला शतक लगाया था। टी-20 वर्ल्ड कप में 6 गेंदों में 6 छक्के लगाना भी यादगार था। 2014 में टी-20 फाइनल मेरे जीवन का सबसे खराब मैच था।
तब मैंने सोच लिया था कि मेरा क्रिकेट करियर खत्म हो गया है। तब मैं थोड़ा रुका और सोचा कि क्रिकेट खेलना शुरू क्यों किया था।डेढ़ साल बाद मैंने टी-20 में वापसी की। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी ओवर में छक्का लगाया। 3 साल बाद मैंने वनडे में वापसी की।
2017 में कटक में मैंने 150 रन बनाए, जो मेरे करियर का सबसे बड़ा वनडे स्कोर है। मैंने हमेशा खुद पर भरोसा रखा। कोई मायने नहीं रखता कि दुनिया क्या कहती है।
मैंने सौरव की कप्तानी में करियर शुरू किया था। सचिन, राहुल, अनिल और श्रीनाथ जैसे लीजेंड के साथ खेला।
जहीर, वीरू, गौतम, भज्जी जैसे मैच विनर्स के साथ खेला।’ संन्यास के फैसले पर युवराज ने कहा, ‘सफलता भी नहीं मिल रही थी और मौके भी नहीं मिल रहे थे। 2000 में करियर शुरू हुआ था और 19 साल हो गए थे। उलझन थी कि करियर कैसे खत्म करना है।
सोचा कि पिछला टी-20 जो जीते हैं, उसके साथ खत्म करता तो अच्छा होता, लेकिन सबकुछ सोचा हुआ नहीं होता। जीवन में एक वक्त आता है कि वह तय कर लेता है कि अब किधर जाना है।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे करियर का सबसे बड़ा लम्हा 2011 वर्ल्ड कप जीतना था। जब मैंने पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 84 रन बनाए थे, तब वह करियर का बड़ा मोड़ था। इसके बाद कई मैच में फेल हुआ, लेकिन बार-बार मौके मिले।
मैंने कभी 10 हजार रन बनाने के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन वर्ल्ड कप जीतना खास था। मैन ऑफ द सीरीज रहना, 10 हजार रन बनाना, इससे ज्यादा खास था वर्ल्ड कप जीतना। यह केवल मेरा नहीं, बल्कि पूरी टीम का सपना था।
मैं 2 साल से संन्यास पर मां और पत्नी से बात कर रहा था। पिता ने कहा कि जब कपिल देव को वर्ल्ड कप के लिए नहीं चुना गया होगा, तो उन्होंने क्या सोचा होगा, लेकिन जब तुमने वर्ल्ड कप जीता था, तब वे कितने खुश हुए होंगे। मेरे पिता को मेरे संन्यास लेने के फैसले पर कोई परेशानी नहीं हुई।