यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही एक अजीब सा अहसास होने लगता है। कोई प्यारा सा हमउम्र अच्छा लगने लगता है। कोई हमें देखे, यह भावना उठने लगती है। कोई चाहने लगे तो पेट में तितलियां उड़ने लगती है। यह अहसास प्रकृति की अनुपम भावना है, जो किशोरावस्था से शुरू होकर जीवन पर्यंत बनी रहती है। इस अवस्था में शरीर में स्थाई परिवर्तन होते हैं। हारमोंस का प्रबल वेग भावनात्मक स्तर पर अनेक झंझावत खड़े कर देता है। प्यार, संवेदना, लगाव, वासना, घृणा और अगलाव की विभिन्न भावनाएं कमोबेश सभी के जीवन में आती हैं।
चिकित्सा विज्ञान मानता है कि मानव शरीर प्रकृति की एक जटिलतम संरचना है। इसे नियंत्रित करने के लिए स्नायु तंत्र यानी नर्वस सिस्टम का एक बड़ा संजाल भी है, जो स्पर्श, दाब, दर्द की संवेदना को त्वचा से मस्तिष्क तक पहुंचाता है। किशोरावस्था में विशिष्ट रासायनिक तत्व निकलते हैं जो स्नायुतंत्र द्वारा शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचते हैं। इन्हीं में शामिल प्यार के कई रसायन भी हैं जो उम्र के विभिन्न पड़ावों पर इसकी तीव्रता या कमी का निर्धारण करते हैं। प्यार की तीन अवस्थाएं हैं-
वासना / तीव्र लालसा
इस अवस्था में विपरीत लिंगी को देखकर वासना का भाव उत्पन्न होता है, जो दो तरह के हार्मोन से नियंत्रित होता है। पुरुषों में ‘टेस्टोस्टेरोन’ तथा महिलाओं में ‘इस्ट्रोजेन’ हार्मोन होते हैं, जो वासना की आग भड़काते हैं। वासना या लालसा का दौर क्षणिक होता है।
आकर्षण
वासना की तीव्रतर उत्कंठा के बाद आकर्षण या प्रेम का चिरस्थायी दौर प्रारंभ होता है जो व्यक्ति में अनिद्रा, भूख न लगना, अच्छा न लगना, प्रेमी को तकते रहना, यादों में खोए रहना, लगातार बातें करते रहना, दिन में सपने देखना, पढ़ने या किसी काम में मन न लगना जैसे लक्षणों से पीड़ित कर देता है। इस अवस्था में डोपामिन, नॉर-एपिनेफ्रिन तथा फिनाइल-इथाइल-एमाइन नामक हारमोन रक्त में शामिल होते हैं।
डोपामिन को ‘आनन्द का रसायन’ भी कहा जाता है क्योंकि यह ‘परम सुख की भावना’ उत्पन्न करता है। नॉर-एपिनेफ्रिन नामक रसायन उत्तेजना का कारक है जो प्यार में पड़ने पर आपकी हृदय गति को भी तेज कर देता है। डोपामिन और नॉर-एपिनेफ्रिन मन को उल्लास से भर देते हैं। इन्हीं हारमोनों से इंसान को प्यार में ऊर्जा मिलती है। वह अनिद्रा का शिकार होता है। प्रेमी को देखने या मिलने की अनिवार्य लालसा प्रबल होती जाती है। वह सारा ध्यान प्रेमी पर केन्द्रित करता है।
इसके अतिरिक्त डोपामिन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण हार्मोन ‘ऑक्सीटोसिन’ के स्राव को भी उत्तेजित करता है। जिसे ‘लाड़ का रसायन’ (स्पर्श) कहा जाता है। यही ऑक्सीटोसिन प्रेम में आलिंगन, शारीरिक स्पर्श, हाथ में हाथ थामे रहना, सटकर सोना, प्रेम से दबाना जैसी निकटता की तमाम घटनाओं को संचालित और नियन्त्रित करता है। इसे ‘निकटता का रसायन’ भी कहते हैं।
एक और रसायन फिनाइल-इथाइल-एमाइन आपको प्रेमी से मिलने के लिए उद्यत करता है। यह प्यार में पड़ने पर सातवें आसमान के ऊपर होने की सन्तुष्टिदायक भावना भी प्रदान करता है। इसी रसायन के बलबूते पर प्रेमी-प्रेमिका रात भर बातें करते रहते हैं।
नॉर-एपिनेफ्रिन इस अवस्था में एड्रीनेलिन का उत्पादन करता है जो प्रेमी के आकर्षण में रक्तचाप बढ़ाता है। हथेली में पसीने छुड़वा देता है, दिल की धड़कन बढ़ा देता है। शरीर में कंपकंपी भर देता है और कुछ कर गुजरने की आवश्यक हिम्मत भी देता है, ताकि आप जोखिम उठाकर भी अपने प्रेमी को मिलने चल पड़ें। मिट्टी के कच्चे घड़े पर उफनती नदी पारकर मिलने जाने जैसा दु:साहस इसी हारमोन के कारण आ जाता है।
फिनाइल इथाइल एमीन नाम का एक और हारमोन है जिसका स्राव भी मस्तिष्क से ही प्यार की सरलतम घटनाओं के कारण होने लगता है।नज़रें मिलना, हाथ से हाथ का स्पर्श होना, भावनाओं का उन्माद उत्पन्न होना वगैरह इसी के कारण सम्भव है।
फिनाइल इथाइल एमीन या प्यार के रसायन की प्रचुर मात्रा चॉकलेट में उपस्थित रहती है, इसीलिए वेलेंटाइन दिवस पर या अपने वेलेंटाइन को प्रेमी चॉकलेट का उपहार देते हैं। इसी प्रकार फूलों का गुलदस्ता भी एक विशिष्ट शारीरिक सुगंध फेरमोन को प्रदर्शित करने का संकेत है। गुलदस्ता एक तरह से इजहारे मोहब्बत का ही प्रतीक है।
लगाव/ अनुराग/ आसक्ति
प्यार की इस अवस्था में प्रीति-अनुराग बढ़कर उस स्तर पर पहुंच जाती है कि प्रेमी संग साथ रहने को बाध्य हो जाते हैं। उन्हें किसी अन्य का साथ अच्छा नहीं लगता और `एक में लागी लगन´ का भाव स्थापित हो जाता है। इस अवस्था का रसायन है ऑक्सीटोसिन तथा वेसोप्रेसिन।ऑक्सीटोसिन जहां `निकटता का हार्मोन´ है, वहीं वेसोप्रेसिन प्रेमियों के मध्य लंबे समय तक सम्बंधों के कायम रखने में अपनी भूमिका निभाता है। वेसोप्रेसिन को `जुड़ाव का रसायन´ कहा जाता है।
हार्मोन का स्तर व संबंध में उष्णता
शरीर में इन हार्मोंस तथा रसायनों का आवश्यक स्तर बना रहने से आपसी सम्बंधों में उष्णता कायम रहती है। शरीर में स्वाभाविक रूप से किशोरावस्था, यौवनावस्था या विवाह के तुरन्त पूर्व व बाद में इन रसायनों व हार्मोंस का उच्च स्तर कायम रहता है। उम्र ढलते-ढलते इनका स्तर घटने लगता है और विरक्ति, विवाहेत्तर सम्बंध जैसी भूल/गलती घटित हो जाती है।
प्यार कमर के ऊपर, यौनेच्छा कमर के नीचे
प्यार और यौन-इच्छा की भावना एक साथ जीवन के साथ चलती है। इसीलिए कहा गया है कि प्यार, कमर के ऊपर है और यौनेच्छा कमर के नीचे किन्तु दोनों का ही नियन्त्रण मस्तिष्क से ही होता है। प्यार अंधा है, प्यार नशा है या प्यार शुद्ध कविता है इसकी विभिन्न व्याख्याएं उपलब्ध हैं लेकिन इस भावना के महत्व को जीव-रसायन से समझाकर कम नहीं किया जा सकता। प्यार एक शुद्ध रासायनिक कविता है जो प्रेमी को ऊर्जावान, निडर और साहसी बना देती है ताकि वह अपने प्रियतम को प्राप्त कर सकें।