1. उत्तर-पूर्व दिशा में पढ़ाई करना चाहिए। पढऩे वाले विद्यार्थी को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व का कोना) की ओर मुंह करके अध्ययन करना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो, प्रथम पूर्व या द्वितीय उत्तर या तृतीय पश्चिम मुंह करके अध्ययन चाहिए। दक्षिण मुंह करके अध्ययन ठीक नहीं है।
2. अध्ययन कक्ष में यदि जलपान, नाश्ता भी किया हो तो जूंठे बर्तन, प्लेट आदि को पढ़ाई करने से पहले ही हटा देना चाहिए।
3. अध्ययन कक्ष में पूर्व-उत्तर की ओर खिड़की अथवा हवादार हो तो अति उत्तम रहता है। इस प्रकार के कक्ष की छत यदि पिरामिड वाली हो तो सर्वश्रेष्ठ परिणाम देने वाली होती है। ऐसा विधार्थी विलक्षण प्रतिभा का धनी होता है।
4. अध्ययन करते समय अपने आस-पास का वातावरण शुद्ध हो, धीमी-धीमी सुगंध वाला वातावरण हो, दुर्गंध कदापि न हो। साथ ही टेबल पर आवश्यक सामग्री ही हो। अनावश्यक सामग्री को तुरंत हटा देनी चाहिए।
5. पढ़ने का समय ब्रह्म मुहूर्त, प्रात:काल, सूर्योदय से पूर्व अर्थात् प्रात: 4.30 से प्रथम प्रहर प्रात: 10 बजे तक उत्तम रहता है। रात को अधिक देर तक पढऩा स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है।
6. अपने अध्ययन कक्ष में सरस्वती, श्री गणेश अथवा अपने आराध्य देव या ऐसी वस्तुएं, चित्र हो जो पढ़ाई से संबंधित हो एवं प्रेरक हो लगाना चाहिए। नकारात्मक चित्रांकन वाली तस्वीरें, फिल्मी तस्वीरें, प्रेम प्रदर्शित करने वाली तस्वीरें नहीं लगाना चाहिए।
7. अध्ययन कक्ष में पुस्तकें नैऋत्य दिशा में रखें अथवा दक्षिण पश्चिम में रख सकते हैं। उत्तर-पूर्व हल्का (कम वजनी) हो। इस दिशा में हल्का सामान रखना श्रेष्ठ होता है।
8. अध्ययन कक्ष का रंग हल्के पीले या हल्के रंग, सफेद रंग का हो तो उत्तम रहेगा। गहरे रंगों का उपयोग वर्जित है। अध्ययन कक्ष में दिखाई देता कांच (दर्पण) नहीं रखना चाहिए।