मेष–
सुख सौख्य के दाता विघ्नहर्ता श्रीगणेश हैं। वे हमें सम्पूर्ण वैभव और सत्ता के साथ सहज-सुंदर जीवन जीना सिखाते हैं। जिम्मेदारी को पुरजोर निभाते हैं। सबको साथ लेकर चलते हैं।
वृष–
जिम्मेदारियों के निर्वहन और इच्छित योजनाओं की सफलता के लिए असीम धैर्य के लिए लंबोदर सर्वोत्तम आदर्श हैं। व्यासकृत श्रीमद्भागवत को उन्होंने पूरी एकाग्रता और बिना थकान के लिखा।
मिथुन–
रिद्धी-सिद्धी के स्वामी गौरी पुत्र गणेश के मित्रों संख्या संभवतः सबसे अधिक है। उन्हें बच्चा-बड़ा हर कोई अपने सखा सा पाता है। वे समर्थ होकर भी सहज हैं। आनंद बढ़ाने वाले हैं।
कर्क–
शिव-पार्वती का परिवार हर व्यक्ति के लिए प्रेरक है। गणेश इस परिवार के सबसे चहेते सदस्य हैं। विनोदी हैं। विवेकी हैं। हर्ष आनंद बढ़ाने वाले हैं। उन सा पुत्र पाना हर दंपति की अभिलाषा होती है।
सिंह–
मां की आज्ञा पर अपने से कहीं शक्तिशाली शिवगणों एवं नंदी इत्यादि से भिड़ जाना। शिवशंकर को घर में आने से हर हाल रोकने का प्रयास करना गणेशजी के साहस पराक्रम एवं अनुशासन का परिचायक है। विकट परिस्थितियों में भी जिम्मेदारी से न डगमगाने की प्रेरणा देने वाले वे अनुपम व्यक्तित्व हैं।
कन्या–
कुबेर ने महल बनवाया तो अपना वैभव दिखाने के लिए शिव को न्यौता। शिव के कहने पर कुबेर गणेश को ले गए। गणेश ने संपूर्ण भोजन सहित वहां की वस्तुएं और महल को भी खाना शुरू कर दिया। इस पर कुबेर को अपनी गलती का अहसास हुआ। गणेश से अधिक समर्थ और वैभवशाली कोई और शायद ही हो लेकिन वे प्राप्य का आदर करना जानते हैं। इसीलिए वे देवाधिदेव और शक्ति के पुत्र हैं।
तुला–
गणपति जी अग्र पूज्य हैं। उनके स्मरण मात्र से विघ्न दूर हो जाते हैं। उनके आवाहन के बिना के शुभ कार्य पूर्ण नहीं होते। वे सर्वोत्तम शुभंकर हैं। जहां वे हैं वहां हर्ष आनंद और मंगल है। हम सबको भी ऐसा ही बनने की कोशिश करना चाहिए कि हर कोई हमें देखकर हर्षित हो।
वृश्चिक–
ऐसी कोई इच्छा नहीं जो गणेश करें और पूरी न हो। लेकिन उन्हें सदा उचित-अनुचित का भान है। वे सामर्थ्य का प्रयोग तब तक नहीं करते जब तक अत्यावश्यक न हो। रिश्तों का सम्मान करना और उनमें गर्मजोशी बनाए रखना भी कोई उनसे सीखे।
धनु–
एक बार कार्तिकेय और गणेश में प्रतियोगिता हुई कि सबसे पहले ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर कौन आता है। कार्तिकेय मोर पर सवार होकर तेजी से उड़ चले। लेकिन गणेश ने शिव-पार्वती की परिक्रमा की और माता-पिता ही उनके लिए समस्त चराचर हैं कहकर प्रतियोगिता पूर्ण कर लेने की घोषणा की। कार्तिकेय भी उनके तर्क से सहज सहमत हो गए। कार्य-व्यापार में इसी बुद्धि कुशलता की आवश्यकता होती है।
मकर–
पद प्रतिष्ठा और मान सम्मान उसी को प्राप्त होता है जो इसका अधिकारी होता है। दयावंत गणपति शिव-पार्वती के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। पात्र बनें पदार्थ तो स्वतः इकट्ठा हो ही जाएंगे।
कुंभ–
गणपति की अपनी मां में अगाध आस्था का ही परिणाम था कि वे देवाधिदेव से भिड़ गए। असंभव के विरुद्ध भी डट गए। इसके परिणाम भी सुखद रहे। आस्था हमें हमारी ही श्रेष्ठताओं और सामर्थ्य से परिचय कराती है और इनका साक्षात्कार होना ही भाग्य है।
मीन–
गणपति अजर-अमर हैं। उनकी कीर्ति निर्विवाद है। वे अनुशासित हैं। सबका आदर करने वाले हैं। अपने वचनों पर अडिग रहने वाले हैं। असहजताओं को भी वे इतना सहज लेते हैं कि वे अंततः शुभत्व को धारण कर लेती हैं।