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Hanuman Jayanti Vrat Vidhi हनुमान जयंती व्रत विधि

Hanuman-Jayanti

Hanuman Jayanti Vrat Vidhi हनुमान जयंती व्रत विधि
             

हनुमान जी को शिवजी का ग्यारहवां अवतार माना जाता है। हिन्दू मान्यतानुसार रुद्रावतार भगवान हनुमान माता अंजनी और वानर राज केसरी के पुत्र हैं। हनुमान जी की जन्मतिथि पर कई मतभेद हैं लेकिन अधिकतर लोग चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही हनुमान जयंती के रूप में मानते हैं।

हनुमान जी की पूजा (Hanuman Jayanti Puja Vidhi in Hindi)

हनुमान जयंती के दिन प्रात: काल सभी नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा में ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हनुमान जी की पूजा में चन्दन, केसरी, सिन्दूर, लाल कपड़े और भोग हेतु लड्डू अथवा बूंदी रखने की परंपरा है।

1. हनुमानजी के जन्म के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं :

हनुमानजी केसरी तथा अंजना के पुत्र थे । इन्हे अंजनीपुत्र तथा केसरीनन्दन भी कहा जाता है । एक मान्यता के अनुसार इंद्र के राज्य में विराजमान वायुदेव ने ही माता अंजनी के गर्भ में हनुमानजी को भेजा था, इसलिए इन्हें वायुपुत्र और पवनपुत्र भी कहा जाता है ।
हिन्दू माह चैत्र की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्री राम भक्त हनुमानजी ने जन्म लिया।

भारत के अलग अलग प्रान्त में हनुमानजी के जन्म की अलग अलग तिथियां मानी जाती है । जिस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ उस दिन को हनुमान भक्त “हनुमान जयंती“ के उपलक्ष्य में मनाते हैं । इस दिन की मान्यता भले ही अलग हो परन्तु सभी भक्तों के मन में हनुमानजी के प्रति आस्था तथा श्रद्धा समान ही है ।

दक्षिण भारत में हनुमानजी का जन्म “मरघजी” माह के मूल नक्षत्र में होना बताया गया है ।
महाराष्ट्र में हनुमान जयन्ती चैत्र माह की पूर्णिमा को ही मनाई जाती है ।

कई हिन्दू पंचांग के अनुसार हनुमानजी का जन्म आश्विन माह की चतुर्दशी की आधी रात में होना बताया गया है, जबकि इनके जन्म की दूसरी मान्यता के आधार पर हनुमानजी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा की सुबह हुआ है । इनका जन्म सूर्योदय के समय हुआ।

2. हनुमान जयंती महोत्सव (Hanuman Jayanti Festival Celebration) :

हिन्दू धर्म में हनुमान जयंती बड़ा ही धार्मिक पर्व है। इसे बड़ी ही श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है । इस दिन सुबह से ही हनुमान भक्त लम्बी लम्बी कतार में लग कर हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। सुबह से ही मंदिरों में भगवान् की प्रतिमा का पूजन -अर्चन शुरू हो जाता है। मंदिरों में भक्त भगवान् की प्रतिमा पर जल, दूध, आदि अर्पण कर भगवान् को सिन्दूर तथा तेल चढ़ाते हैं ।

हनुमानजी की प्रतिमा पर लगा सिन्दूर अत्यन्त ही पवित्र होता है, भक्तगण इस सिन्दूर का तिलक अपने मस्तक पर लगाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि इस तिलक के द्वारा वे भी हनुमानजी की कृपा से हनुमानजी की तरह शक्तिशाली, ऊर्जावान तथा संयमित बनेंगे ।
इस दिन मंदिरों में सुबह से ही प्रसाद वितरण का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। प्रत्येक मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है । कई मंदिरों में हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में भंडारे का आयोजन भी किया जाता है । बड़ी संख्या में श्रद्धालु, हनुमान भक्त मंदिरों में पहुंचते हैं ।

3. हिन्दू भक्तों के लिए हनुमानजी का महत्त्व (Hanuman Jayanti Mahatv) :

हनुमानजी के जन्म का मुख्य उद्देश्य दैवीय आत्मा, जो धरती पर मनुष्य के रूप में अवतरित हुए हैं, उन्हें प्रत्येक विपदाओं से बचने के लिए माना जाता है ।

हिन्दू धर्म में हनुमानजी को शक्ति, स्फूर्ति एवं ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है ।

धर्म में प्रचलित अनेक कथाओं के आधार पर हनुमानजी का जन्म अलग अलग युगों में अलग अलग रूपों में बताया गया है। जहां त्रेतायुग में उन्होंने श्री राम के सेवक एवं भक्त बनकर श्री राम का साथ दिया, वहीं द्वापर युग में पांडव एवं कौरव के बीच युद्ध के दौरान श्री कृष्णा जो कि अर्जुन ( राम का ही एक अवतार) के सारथी थे, के साथ मिल कर रथ के ऊपर बालरूप धारण कर अर्जुन की रक्षा की।

हनुमानजी को शिवजी का रूप भी माना गया है। प्रत्येक हनुमान मंदिर में शिव प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित रहती हैं। इसलिए इन्हे रौद्र रूप में भी जाना जाता है ।

4. हनुमानजी की पूजा ऐसे तो साधारण ही है , परन्तु ऐसा मन जाता है कि यदि आप कुछ नियमों का पालन करें, तोहनुमानजी शीघ्र ही प्रसन्न होंगे (Hanuman Jayanti Pooja Vidhi)

हिन्दू मान्यता के अनुसार हनुमानजी सिन्दूरी अथवा केसर वर्ण के थे , इसीलिए हनुमानजी की मुर्ति को सिन्दूर लगाया जाता है । पूजन विधि के दौरान सीधे हाथ की अनामिका ऊँगली से हनुमानजी की प्रतिमा को सिन्दूर लगाना चाहिए।
हनुमानजी को केवड़ा, चमेली और अम्बर की महक प्रिय है , इसलिए जब भी हनुमानजी को अगरबत्ती या धूपबत्ती लगानी हो, तो इन महक वाली ही लगाना चाहिए, हनुमानजी जल्दी प्रसन्न होंगे । अगरबत्ती को अंगूठे तथा तर्जनी के बीच पकड़ कर , मूर्ति के सामने 3 बार घडी की दिशा में घुमाकर, हनुमानजी की पूजा करना चाहिए ।

हनुमानजी के सामने किसी भी मंत्र का जाप कम से कम 5 बार या 5 के गुणांक में करना चाहिए ।
ऐसे तो भक्त हर दिन अपने भगवान को पूज सकते हैं ,परन्तु फिर भी हिन्दू धर्म में विशेषकर महाराष्ट प्रान्त में “मंगलवार” को हनुमानजी का दिन बताया गया है । इसलिए इस दिन हनुमानजी की पूजा करने का विशेष महत्त्व है ।

भारत के अलग अलग प्रान्त में मंगलवार के साथ साथ शनिवार को भी हनुमानजी का दिन माना जाता है , और इसीलिए इन दोनों दिनों का बहुत महत्व है । भक्तगण इन दिनों में हनुमान चालीसा, सुंदरकांड आदि का पाठ करते हैं । इस दिन हनुमानजी की प्रतिमा पर तेल तथा सिन्दूर भी चढ़ाया जाता है ।

5. हनुमानजी से हमे एक सच्चे भक्त होने की सीख मिलती है:

“जय श्री राम, जय श्री राम” कहते कहते रामजी की आज्ञा को सर्वोपरि रख सभी कार्य पूर्ण करते जाते थे । रामजी की आज्ञा से ही वे समुद्र लांघ कर,सीताजी को बचाने रावण की लंका जा पहुंचे। जहां उन्होंने अपना बल एवं शौर्य दिखाते हुए लंका जला डाली और लौटकर स्वामी के चरणों में सर नवाकर सीताजी का हाल समाचार श्री रामजी को सुनाया । हनुमानजी श्री राम के सच्चे सेवक थे, उन्होंने श्री राम के चरणों में ही अपना जीवन समर्पित कर दिया था ।

हनुमानजी श्री राम के अतुलनीय भक्त एवं सेवक थे। हिन्दू मान्यता के अनुसार हनुमानजी मंगलदायक , मंगलकारक ,ऊर्जा एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । हिन्दू धर्म में हनुमानजी को शक्ति एवं ऊर्जा का दूत माना जाता है । किसी भी प्रकार का कार्य चाहे छोटा हो या बड़ा, हनुमानजी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं । उन्हें जादुई शक्ति तथा दुश्मनों एवं बुरी आत्माओं, विपत्ति से बचाने के लिए पूजा जाता है। हनुमान चालीसा की पंक्ति ” भूत पिशाच निकट नहीं आवे,महावीर जब नाम सुनावे “ भक्त को सम्बल तथा हनुमानजी के प्रति विश्वास दिलाते हैं और उनकी श्रद्धा हनुमानजी के चरणों में बढ़ती जाती है।

हिन्दू मान्यता के अनुसार हनुमानजी की प्रतिमा खड़े रूप में होना चाहिए। भक्तों का ऐसा मानना है कि खड़े हनुमान की प्रतिमा जीवन में आगे बढ़ने में सहायक होती है, तथा उनके चरणों में रखी गई मनोकामना हनुमानजी तुरंत स्फूर्ति के साथ पूर्ण करते हैं । बैठे हनुमान की प्रतिमा को हनुमानजी की ध्यान मुद्रा में माना जाता है, और कहा जाता है इस अवस्था में हनुमानजी एक ही जगह स्थिर रहते है तथा इससे भक्तों की मनोकामना भी स्थिर ही रह जाती है अर्थात वह आगे नहीं बढ़ पाती।

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