आमवस्या का व्रत हर महीने में रखा जाता है। ज्येष्ठ महीने में पड़ने वाली अमावस्या के व्रत को ब्रह्मसावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मसावित्री व्रत की पूजा विधि भी ज्येष्ठ पूर्णिमा को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत के समान ही बताई गई है।
ब्रह्मसावित्री व्रत की विधि (Brahmasavitri Vrat vidhi in Hindi)
ब्रह्मसावित्री व्रत में सबसे पहले घर को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। इस के बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। ब्रह्माजी के बाईं ओर सावित्री तथा दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।
टोकरी को वट वृक्ष के नीचे रखकर सावित्री व सत्यवान की विधिपूर्वक पूजा कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजा के समय जल, मौलि, रोली, सूत, धूप, चने आदि का प्रयोग करना चाहिए। लाल सूत को वट वृक्ष में तीन बार परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए। पूजा के अंत में सावित्री व सत्यवान की कथा सुननी चाहिए।व्रत समाप्त होने के बाद वस्त्र, फल आदि का बांस के पत्तों में रखकर दान करना चाहिए और चने का प्रसाद बांटना चाहिए।
ब्रह्मसावित्री व्रत फल (Benefits of Brahmasavitri Vrat in Hindi)
ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले ब्रह्मसावित्री व्रत का पालने करने वाली स्त्री को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। इसके अलावा स्त्री संसार के सभी सुखों को भोग कर कर मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक जाती है।