शनि देव का नाम आते ही मनुष्य घबरा जाता है। क्योँकि शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है क्योंकि मनुष्यों को उनके अच्छे-बुरे कर्मों का दंड शनिदेव ही देते हैं।शास्त्रों में शनि देव के क्रोध के अनेक उदाहरण मिलते हैं। कहते हैं कि मेघनाद की कुंडली में रावण ने सारे ग्रहों को पकड़कर सबसे शुभ माने जाने वाले ११वें भाव में क़ैद कर दिया था।
लेकिन त्रिलोक को जीतने वाला रावण भी शनि देव को रोक न सका और उन्होंने धीरे-से अपना पैर अनिष्ट-कारक १२वें भाव में बढ़ा दिया। शनि देव के इस कार्य की ही वजह से अपराजेय समझा जाने वाला मेघनाद भी आख़िरकार मृत्यु का ग्रास बना।
वैदिक ज्योतिष के मुताबिक़ भिन्न-भिन्न भावों में शनि का फल भी भिन्न-भिन्न होता है। शनि सूर्य-पुत्र के नाम से ख्यात है। कहते हैं कि शनि जिसे चाहे राजा से रंक बना देता है और रंक से राजा।
शनिश्चरी अमावस्या को शनि के 10 नाम जपने से भारी शनिदोष में भी अत्यंत लाभ मिलता है। यदि प्रत्येक शनिवार को पीपल के वृक्ष के पास शनि के सिद्ध नामों का जप किए जाने से शनिदोष दूर होते हैं।
तो आइए जानते हैं कि कैसे जपें शनिदेव के सिद्ध नाम?
शनिवार सुबह जल में काले तिल डालकर स्नान करें। स्नान के बाद किसी पीपल पर दूध और जल अर्पित करें। इसके बाद पीपल के पास बैठकर शनि के 10 नामों का ज्यादा से ज्यादा बार जप करें। ये 10 नाम मंत्र समान ही माने जाते हैं।
ये हैं शनि के 10 नाम
1. कोणस्थ
2. पिंगल
3. बभ्रु
4. कृष्ण
5. रौद्रान्तक
6. यम
7. सौरि
8. शनैश्चर
9. मंद
10. पिप्पलाश्रय