Batuk Bhairav Sarvkamna Mantra : सर्व -मनोकामना पूर्ति हेतू भैरव साबर मंत्र प्रयोग दिन :- कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरु करे (७ दिन की साधना है )
समय :- रात्रि (९;35) पर
दिशा :- दक्षिण
आसन:- कम्बल का होना चाहिए
पूजन सामग्री :- कनेर या गेंदे के फूल ,,बेसन के लड्डू ,,सिंदूर ,,दो लौंग ,,चौमुखा तेल का दीपक,,ताम्बे की प्लेट ,,लोबान ,,गाय का कच्चा दूध ,,गंगाजल
साधना सामग्री :- भैरव यन्त्र ,, साफल्य माला या काले हकीक की माला
|| मंत्र :-“”ॐ ह्रीं बटुक भैरव ,बालक वेश ,भगवान वेश ,सब आपत को काल ,भक्त जन हट को पाल ,कर धरे सिर कपाल,दूजे करवाला त्रिशक्ति देवी को बाल ,भक्त जन मानस को भाल ,तैतीस कोटि मंत्र का जाल ,प्रत्यक्ष बटुक भैरव जानिए ,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति ,फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा “” ||
विधि :- सर्व प्रथम गुरु पूजन कर के गुरुदेव से प्रयोग की आज्ञा ले ले ,,फिर अपनी मनोकामना एक कागज में लिख कर गुरु यन्त्र के नीचे रख दे ,,और मन ही मन गुरुदेव से साधना की सफलता के लिए विनती करे ,,
फिर ताम्बे की प्लेट में भैरव यन्त्र स्थापित करे उसे दूध से स्नान कराए ,,फिर गंगाजल से स्नान कराकर यन्त्र को पोछ ले ,,इस के बाद यन्त्र में सिंदूर से तिलक लगाये ,,और यन्त्र के सामने दो लौंग स्थापित करे,,और उस यन्त्र को लोबान का धुप दे ,,
तेल का दीपक अपने बायीं ओर जला के रख ले ,,साधना काल तक दीपक अखंड जलना चाहिए ,,फिर साफल्य माला या काले हकीक की माला से निम्न मंत्र का दो माला जप करे,,
यह प्रक्रम सात दिन तक करना है ,,आठवे दिन यन्त्र और माला को जल में प्रवाहित कर दे. टोटके का प्रयोग टोटके का प्रयोग करते समय उसके अनुरुप मुहूर्त्त का ध्यान अवश्य रखना चाहिए, ताकि कार्य की सिद्धि निर्विघ्न हो सके और करने में कोई बाधा या अड़चन न पड़े । आकाश में स्थित ग्रह, नक्षत्र प्रतिक्षण ब्रह्माण्ड के पर्यावरण को बदलते रहते हैं और उनका प्रभाव जड़ व चेतन सभी पदार्थों पर अवश्य ही पड़ता है । अतः साधना के सम्पादन में दिन, समय, तिथि, नक्षत्र सभी का ध्यान रखना आवश्यक है ।
लग्न:- वृष, धनु और मीन लग्न में किसी भी प्रकार की साधना या अनुष्ठान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन लग्नों का प्रभाव साधक को निराशा, असफलता, दुःख और अवमानना देने वाला होता है ।* मिथुन लग्न भी अनुष्ठान के लिये प्रतिकुल फलदायी होती है, जिसका दुष्प्रभाव साधक की संतान को भोगना पड़ सकता है ।* मेष, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर और कुम्भ लग्न में किये गये अनुष्ठान शुभ, सुफलदायक, श्रीसम्पत्ति-दायक और मान बढ़ाने वाले होते हैं ।
दिशा* पूर्व दिशाः- सम्मोहन, देव-कृपा, सात्त्विक कर्म के उपयुक्त ।* पश्चिमः- सुख-समृद्धि, लक्ष्मी-प्राप्ति, मान-प्रतिष्ठा के लिये शीघ्रफलदायक ।* उत्तरः- रोगों की चिकित्सा, मानसिक-शान्ति, आरोग्य-प्राप्ति हेतु ।* दक्षिणः- अभिचार-कर्म, मारण, उच्चाटन, शत्रु-शमन हेतु । मास तथा ऋतुमासः-चैत्र – दुःसह-कारक, वैशाख – धनप्रद, ज्येष्ठ – मृत्यु, आषाढ – पुत्र, श्रावण – शुभ, भाद्रपद – ज्ञान-हानि,आश्विन – सर्व-सिद्धि, कार्तिक – ज्ञान-सिद्धि, मार्गशीर्ष – शुभ, पौष – दुःख, माघ – मेघावृद्धि, फाल्गुन – वशीकरण कारक होता है ।
ऋतुः- हेमन्त – शान्ति, पुष्टि के अनुष्ठान । वसन्त – वशीकरण । शिशिर – स्तम्भन । ग्रीष्म – विद्वेषण, मारण । वर्षा – उच्चाटन । शरद – मारण ।तिथि तथा पक्षतिथिः- सुख-साधन, संपन्नता के लिए सप्तमी तिथि, ज्ञान एवं शिक्षा के लिए द्वितीया, पंचमी व एकादशी शुभ मानी गयी है । शत्रुनाश के लिये दशमी, सभी कामनाओं के लिए द्वादशी श्रेष्ठ होती है ।पक्षः- ऐश्वर्य, शान्ति, पुष्टिकर मन्त्रों की साधना शुक्ल पक्ष में और मुक्तिप्रद मन्त्रों की साधना कृष्ण पक्ष में प्रारम्भ की जाती है।