Jagannath Puri Rath Yatra। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

Jagannath-Puri-Rath-Yatra

प्रतिवर्ष उड़ीसा के पूर्वी तट पर स्थित श्री जगन्नाथ पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथ-यात्रा का उत्सव पारंपरिक रीति के अनुसार बड़े धूमधाम से आयोजित किया जाता है। जगन्नाथ रथ उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से आरंभ करके शुक्ल एकादशी तक मनाया जाता है। इस दौरान रथ को अपने हाथों से खिंचना बेहद शुभ माना जाता है।

रथ का रूप

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में भगवान श्री कृष्ण जिन्हें जगन्नाथ भी कहते हैं, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ बनाया जाता है।  यह रथ लकड़ी के बने होते हैं। इन रथों के नाम हैं:

* जगन्नाथजी के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’

* बलराम जी के रथ को  ‘तलध्वज’

* सुभद्रा जी का रथ “देवदलन” व “पद्मध्वज’

रथयात्रा का पूर्ण विवरण (Details of Rath Yatra in Hindi)

रथ यात्रा महोत्सव में पहले दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा का रथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की शाम तक जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक खिंच कर लाया जाता है। इसके बाद दूसरे दिन रथ पर रखी जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि पूर्वक उतार कर इस मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक श्रीजगन्नाथ जी यहीं निवास करते हैं।इसके बाद आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी की यात्रा की जाती है जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं। इस दौरान पुन: गुंडिचा मंदिर से भगवान के रथ को खिंच कर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है। मंदिर तक लाने के बाद प्रतिमाओं को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है।

रथयात्रा का इतिहास (History of Rath Yatra in Hindi)

पौराणिक मान्यता है कि द्वारका में एक बार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया। इसी घटना की याद में हर साल तीनों देवों को रथ पर बैठाकर नगर के दर्शन कराए जाते हैं। रथयात्रा से जुड़ी कई अन्य रोचक कथाएं भी हैं जिनमें से एक जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की अपूर्ण मूर्तियों से भी संबंधित हैं।

महाप्रसाद (Mahaprasad at Jagannath Puri Mandir​)

जगन्नाथ पुरी मंदिर और रथयात्रा का एक मुख्य आकर्षण महाप्रसाद भी होता है। यह महाप्रसाद जगन्नाथ पुरी मंदिर स्थित रसोई में बनता है। इस प्रसाद में दाल-चावल के साथ कई अन्य चीजें भी होती हैं जो भक्तों को बेहद कम दाम पर उपलब्ध कराई जाती है।  नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद यहां विशेष रूप से मिलता है।

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