Annakoot । अन्नकूट

Annakoot

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा को अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में आरम्भ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाए थे, इसलिए इस दिन का नाम अन्नकूट पड़ा, कई जगह इस पर्व को गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

अन्नकूट पूजा विधि (Govardhan or Annakut Puja Vidhi)

ब्रजवासियों का यह मुख्य त्यौहार सम्पूर्ण भारत में बड़े ही उत्साह और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण छप्पन प्रकार के पकवान, रंगोली, पके हुए चावलों को पर्वत के आकार में बनाकर भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करते हैं तद्योपरांत श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उनकी पूजा-वंदना करते हैं। उसके बाद अपने स्वजनों और अतिथियों के साथ बाल गोपाल को अर्पित इस महाप्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। अन्नकूट के पवित्र दिवस पर चन्द्र दर्शन अशुभ माना जाता है। इसलिए प्रतिपदा में द्वितीया तिथि के हो जाने पर इस पर्व को अमावस्या को ही मनाने की परंपरा है।

गोवर्धन कथा (Govardhan Katha)

मान्यतानुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन इन्द्र के घमंड को तोड़ा था, जिस कारणवश इस दिन बाल गोपाल के पूजा का बड़ा महत्व होता है। आस्थावान भक्तों की मानें तो इस अनुष्ठान को विधिपूर्वक संपन्न करने से भक्त को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अन्नकूट की विशेष रात्रि पर भक्तगण भव्य सत्संग का आयोजन करते हैं और पूरी रात श्रीप्रभु के भजन और उनके गुणों के बखान को गाते हैं।

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