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शनि की साढ़े सती तथा ढैय्या

Shanidev-Upay

शनि की साढ़े सती तथा ढैय्या

भारतीय ज्योतिष में शनि ग्रह के साथ सबसे अधिक भयावह परिणामों को जोडा जाता है तथा बहुत से पंडित तो अधिकतर लोगों को उनकी समस्याओं का मूल कारण शनि ग्रह ही बताते हैं. शनि ग्रह न्यायाधीश की भूमिका भी निभाता है. कहा जाता है शनि की साढ़े सती तथा शनि के ढैय्या में लोगो को उनके द्वारा किये गए अच्छे व बुरे कर्मो का फल मिलता है

आज हम शनि की साढ़े सती पर चर्चा करते है । भारतीय ज्योतिष में प्रचलित एक धारणा के अनुसार जब-जब शनि ग्रह गोचर में भ्रमण करते हुए किसी कुंडली में चन्द्र राशि से 12वीं, पहली तथा दूसरी राशि में से भ्रमण करते हैं तो जातक के जीवन में साढ़े सती का शुरू हो जाती है । उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा तुला राशि में स्थित हैं तो तुला राशि इस व्यक्ति की चन्द्र राशि कहलाती है तथा जब-जब शनि गोचर में तुला राशि से 12वीं, पहली तथा दूसरी राशि अर्थात कन्या , तुला तथा वृच्शिक राशि में भ्रमण करते हैं तो कुंडली धारक के ज़ीवन में साढ़े सती का असर माना जाता है।

इस गणना के लिए चन्द्र राशि को पहली राशि माना जाता है। शनि एक राशि में लगभग अढ़ाई वर्ष तक भ्रमण करते हैं तथा इस तरह तीन राशियों में भ्रमण पूरा करने में उन्हें लगभग साढ़े सात वर्ष लग जाते हैं। इसी लिए इस धारणा का नाम साढ़े सती रखा गया है । साढ़े सती को आगे फिर तीन चरणों में विभाजित किया जाता है। शनि ग्रह के चन्द्र राशि से 12वीं राशि में भ्रमण को साढ़े सती का पहला चरण, चन्द्र राशि से पहली राशि में भ्रमण को साढ़े सती का दूसरा चरण तथा चन्द्र राशि से दूसरी राशि में भ्रमण को साढ़े सती का तीसरा चरण कहा जाता है.

आइए अब शनि के ढैय्या को समझने का प्रयास करते हैं। इस धारणा के अनुसार जब-जब शनि गोचर में किसी कुंडली में चन्द्र राशि से चौथी तथा आठवीं राशि में भ्रमण करते हैं तो कुंडली धारक के ज़ीवन में ढैय्या का असर माना जाता है । शनि एक राशि में लगभग अढ़ाई वर्ष तक भ्रमण करते हैं, इसी लिए इस धारणा का नाम ढैय्या रखा गया है । उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा तुला राशि में स्थित हैं तो तुला राशि इस व्यक्ति की चन्द्र राशि कहलाती है तथा जब-जब शनि गोचर में मिथुन राशि से चौथी तथा आठवीं राशि अर्थात मकर तथा वृष राशि में भ्रमण करते हैं तो कुंडली धारक के ज़ीवन में ढैय्या का असर माना जाता है।

शनि की साढ़े सती तथा ढैय्या उन्ही लोगों के जीवन में मुसीबतें लेकर आते हैं जिनकी कुंडली में शनि जन्म से ही बुरा असर दे रहे होते हैं जबकि जिन लोगों कि कुंडली में शनि जन्म से शुभ असर दे रहे होते हैं, उन लोगों के जीवन में शनि की साढ़े सती तथा ढैय्या का बुरा असर नहीं होता बल्कि ऐसे लोगों को इन समयों के दोरान विशेष लाभ होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए किसी व्यक्ति विशेष के लिए शनि साढ़े सती तथा शनि ढैय्या के असर देखने के लिए यह देखना अति आवश्यक है कि शनि उस व्यक्ति की जन्म कुंडली में कैसा असर दे रहे हैं। अगर शनि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुरा असर दे भी रहे हों, तब भी शनि साढ़े सती तथा शनि ढैय्या के बुरे प्रभावों को ज्योतिष के विशेष उपायों के माध्यम से कम किया जा सकता है। इन उपाय के बारे में हम अलग से चर्चा करेंगे .

सिद्धार्थ गौतम

(ज्योतिष संपादक इंडिया हल्ला बोल)

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