हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध काव्यात्मक कृति है। यह कृति भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान को समर्पित है, जिसमें उनके गुणों आदि का बखान किया गया है। हिन्दू धर्म में हनुमान जी की आराधना हेतु ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ सर्वमान्य साधन है। इसका पाठ सनातन जगत में जितना प्रचलित है, उतना किसी और वंदना या पूजन आदि में नहीं दिखाई देता। ‘श्री हनुमान चालीसा’ के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी माने जाते हैं। इसीलिए ‘रामचरितमानस’ की भाँति यह हनुमान गुणगाथा फलदायी मानी गई है। यह अत्यन्त लघु रचना है, जिसमें पवनपुत्र हनुमान की सुन्दर स्तुति की गई है। बजरंग बली की भावपूर्ण वंदना तो इसमें है ही, साथ ही भगवान श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है।
गोस्वामी तुलसीदास ने राम भक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन् समूची मानव जाति को भगवान श्रीराम के आदर्शों से जोड़ दिया। तुलसीदास जी कि ‘हनुमान चालीसा’ अमर कृतियों में गिनी जाती है। संवत 1554 को श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अवतरित गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की राम भक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि आज गोस्वामी जी राम भक्ति के पर्याय बन गए हैं। यह गोस्वामी तुलसीदास की ही देन है, जो आज भारत के कोने-कोने में ‘रामलीला’ का मंचन होता है। कई संत राम कथा के माध्यम से समाज को जागृत करने में सतत् लगे हुए हैं। तुलसीदास जी ‘रामचरितमानस’ के ही नहीं अपितु विश्व में सबसे ज्यादा पड़ी जानें वाली प्रार्थना ‘हनुमान चालीसा’ के भी रचियता थे।
उत्तर प्रदेश में चित्रकूट के राजापुर में तुलसीदास की जन्म स्थली में आज भी उनके हाथ का लिखा ‘रामचरितमानस’ ग्रंथ का एक भाग ‘अयोध्याकांड’ सुरक्षित है। इसके दर्शन के लिये पूरी दुनिया से लोग आते हैं। तुलसीदास की 11वीं पीढी के लोग एक धरोहर की तरह इसे संजो कर रखे हुये हैं। कभी अपने परिवार से ही उपेक्षित कर दिये गये अबोध राम बोला आज पूरे विश्व में भगवान की तरह पूजे जाते हैं। संत तुलसीदास चित्रकूट में अपने गुरु स्थान नरहरिदास आश्रम पर कई वर्षो तक रहे और यहाँ पर उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व उनके भ्राता लक्ष्मण के दो बार साक्षात् दर्शन भी किये थे।
यद्यपि पूरे भारत में ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ लोकप्रिय है, किन्तु विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। लगभग सभी हिन्दुओं को यह कंठस्थ होता है। कहा जाता है कि इसके पाठ से भय दूर होता है, क्लेश मिटते हैं। इसके गंभीर भावों पर विचार करने से मन में श्रेष्ठ ज्ञान के साथ भक्ति-भाव जाग्रत होता है। इस रचना के साथ विशेष बात यह है कि दक्षिण भारत के मंदिरों में भी यह वहाँ कीलिपि में लिखा हुआ देखा जा सकता है, तथा दक्षिण के हनुमान भक्त यदि हिन्दी न भी जानते हों तो भी इसे एक मंत्र के समान याद रखते हैं। उल्लेखनीय है कि संस्कृत के तो अनेक स्तोत्र उत्तर-दक्षिण में प्राचीन काल से ही समान रूप से लोकप्रिय हैं, परन्तु भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी की विरली ही रचनाओं को यह गौरव प्राप्त हो सका है।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥
महावीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमिति के संगी ॥
कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज़ प्रताप महा जग बंदन ॥
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहीं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंन्द्र जी के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना । लंकेश्वर भय सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानु ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दु्र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
आपन तेज़ सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावैं ॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वीं राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोइ लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखबारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरो भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहीं बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥