आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
शनिदेव की आरती
जय जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी
जय जय जय शनि देव।
श्याम अंक वक्र-दृष्टि चतुर्भुजाधारी,
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी।
जय जय जय शनि देव।
किरीट मुकुट शीश सहज दीपत है लिलारी
मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी।
जय जय जय शनि देव।
मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी
लोहा, तिल, तेल, उड़द, महिष है अति प्यारी।
जय जय जय शनि देव।
देव दनुज ऋषि मुनि सुरत और नर नारी
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी।
जय जय जय शनि देव।