संवेदनशील मसला है तो फिर इतनी बहस क्यों?

सेना की सेहत तो पहले ही सेना प्रमुख के घूस कांड ने नासाज कर रखी थी और अब केंद्र सरकार की जानकारी के बिना सेना की टुकड़ियों के दिल्ली कूच की छपी खबर ने सेना के लिए आईसीयू का दरवाजा खोलने का काम किया है। यह सब 16 जनवरी की उस तारीक को हुआ जिस दिन सेना प्रमुख ने अपनी उम्र विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी।

एक दैनिक अखबार में छपी इस खबर को विशेषज्ञों का एक तबका जनरल वी के सिंह के उम्र विवाद से जोड़ कर भी देख रहा है। हालांकि सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक कर इन कयासों व आशंकाओं पर विराम लगाने की कोशिश की। इस तरह के विवादों ने सेना प्रमुख और केंद्र सरकार की बीच पड़ी खाई को और गहरा कर दिया है। जहां प्रधानमंत्री ने इस खबर का खंडन किया तो देश के रक्षा मंत्री ने इसको आधारहीन करार दिया।

विपक्षी दल जो भूखे शेर की तरह हमेशा सरकार पर घात लगाए बैठा रहता है भी इस मुद्दे को देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ बताकर संवेदनशीलता की दुहाई देते हुए सरकार का समर्थन कर रहा है। इसे सेना और सरकार के बीच की दूरियां ही तो कहेंगे कि हिसार और आगरा से सेना की दो टुकड़ियां दिल्ली की ओर बढ़ जाती हैं और सरकार व रक्षा मंत्रालय को इसकी भनक तक नहीं लगती। चूंकि यह मामला देश की सेना से जुडा हुआ था तो मनमोहन सिंह ने भी जरा सी देरी न दिखाई और पद्म पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान ही इस खबर का खंडन कर डाला तो रक्षा मंत्री ने सैन्य ऑपरेशन के महानिदेशक से इस पूरे मसले पर जवाब मांगा। बाद में सेना के जवाब से संतुष्टि दिखाते हुए सब कुछ ठीक होने का इशारा भी किया।

तीनों सेनाओं से संवाद की कमी के सवाल पर रक्षा मंत्री थोड़े असहज नजर आते हैं। पर उन्होंने ऐसी खबर को निराधार बताते हुए सेना प्रमुखों के साथ अपने संबधों को मधुर बताया। तो फिर ऐसा कैसे हो गया कि रक्षामंत्रालय के परिवार के दो सदस्य दिल्ली की तरफ रवाना हो गए और केंद्र में बैठ अभिभावक इससे बेखबर रहे? सेना भी इसे रूटीन अभ्यास का हिस्सा मान रही है। अब सवाल ये उठता है कि जब टुकड़ियों की यह गतिविधि एक रूटीन अभ्यास का हिस्सा थी। तो फिर इसमें इतना शोर शराबा करने की क्या जरूरत आन पड़ी? कल इस खबर को प्रमुखता से छापने वाले अखबार इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता एक निजी न्यूज चैनल में अपनी इस खबर के साथ खड़े नजर आए। उन्होंने ने कहा कि मीडिया हमेशा कोई भी खबर को तथ्यों के आधार पर ही उसे सार्वजनिक करता है। उन्होंने समय आने पर खबर से जुड़े तथ्यों को सरकार के सामने पेश करने की बात भी कही। उनके इस बयान ने सरकार और सेना दोनों की मुश्किलें जरुर बढ़ा दी होंगी। अगर वास्तिवकता में यह मसला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है तो फिर इस पर इतनी बहस क्यों? कुछ बु़द्धजीवी तो यहां तक कह रहे है कि अगर जनरल वी के सिंह का उम्र विवाद मीडिया में न आया होता तो घूस कांड के साथ यह खबर भी राजनैतिक गलियारों में कहीं दब जाती।

प्रवीण कुमार तिवारी

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