हर रोज एक नए सवाल से आगाज़ होता हैं दिन का ….. जूझना पड़ता हैं इन सवालों और उनके जवाबों से हर रोज …. जब किसी बात पर होठो पर मुस्कान आती हैं तो चेहरे पर बिखरने से पहले ही मेरे ज़हन सभी एक सवाल उठता हैं कि किसको धोखा देने की कोशिश हैं ये ख़ुद को .. …? कही मैं इस हँसी के मुखौटे में अपने बिखरते हुए ख़्वाबो को छुपाने की ज़द्दोज्हेत में तो नहीं लगी हूँ,, अज़ीब सी बेचैनी हैं मन सभी … न इन सवालो का जवाब मिलता हैं और न इस बेचनी से निगाह मिला पाने की हिम्मत ……!
क्या हैं ये क्यूं हैं ये ……? कोई जवाब नहीं हैं, हैं तो बस सन्नाटा वैसा ही जैसे सुनसान रास्तों पर आधी रात को छाया रहता हैं और ……. शायद कभी इनमें से किसी सवाल का जवाब मिल भी जाये तो ये वैसा ही होता हैं जैसे उस सन्नाटे में से अचानक से आयी कोई भयानक सी आवाज़ …………
स्नेहा जायसवाल