भ्रष्ट देशों की सूची में हमारा देश अत्यंन्त महत्वपूर्ण स्थान पर है। हम सर्वाधिक बेईमान देशों में अग्रगन्य हैं। हमारे ’भाग्य विधाताओ’ का मन बिना भेंट लिए नहीं पसीजता। पैसे को खुदा मानना इनका धर्म है।
सत्ता ’शिखर पर घोटालों में डूबे देश में क्या अब भ्रष्टाचार की मात्रा कोई मुद्दा बनता है? भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का स्थान अव्वल देशो के साथ होगा यह जानने के लिए आम आदमी के मन में किसी ’ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल’ की ताजा रिपोर्ट पढ़ने लायक उत्सुकता भी नहीं बची। उसे तो रोजमर्रा के कामों के लिए पग-पग पर भ्रष्टाचार के दशानन के घर पानी भरना पड़ता है। हम महकमें के ’भाग्य विधाताओं’ का मन भेंट लिए बिना नहीं पसीजेगा। यह तय तथ्य आम आदमीं ने ह्रदयंगम कर स्थिति के साथ जीना सीख लिया है। या यूं कहा जाए कि उसे इतना सताया जा चुका है कि भ्रष्टाचार मिटाने की बात करने चालों पर उसे गुस्सा या तरस आ जाता है। दागी मंत्रियों का मामला उछालनें वालों का दामन भी दागदार है। और जब राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं तो नंगों में भेद करना कौन सी चतुराई कही जाएगी।
दुनिया भर के देशो की ईमानदारी और बईमानी का लेखा-जोखा रखनें वाली अंतर्राष्टीय संस्था पारदर्शता’ द्धारा जारी 26 अक्टूबर 2010 को 178 देशो की सूची में हम सर्वाधिक बेईमान देशों की सूची में हैं। दस नम्बरों में हम केवल 3.3 अंक पा सके भ्रष्ट देशो की रैंकिंग में हमारा 87 वॉ स्थान है। पिछले वर्षो में हमारी रैंकिंग में बढ़ोत्तरी हुई है। यानि की हम और भी भ्रष्ट हुए हैं। वहीं हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका हमारे करीब है जो कई वर्षो के आंतरिक गृह युद्ध झेलनें के बाद भी 3.2 अंक पाकर 91 वॉ स्थान पर है। जबकि हमारा दूसरा पडोसी देश भूटान हमसे कहीं आगे 5.7 अंक पाकर 37 वें स्थान पर है। जहां नेंपाल पाकिस्तान और बांग्लादेश सरीखे पिछडे+ और आंतरिक कलह से जूझ रहे यह देश जरुर हमसे पीछे हैं। जहां नेपाल और पाकिस्तान बेईमानों की रैंकिंग में क्रमश 146 वें व 143 वें स्थान पर है वहीं बांग्लादेश की स्थिति इन सबसे बेहतर है जो कि 134 वें स्थान पर है।
आजादी के छह दशक बाद हमारे संविधान के तीनों आधारभूत स्तम्भों-विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार का काला साया मॅंडरा रहा है। पूरी व्यवस्था प्रदूषित बनती जा रही है। हर जगह व्यक्तिगत निष्ठा को योग्यता पर और सम्पर्क को नियमों पर तरहीज दी जाती है। एक सदी पहले अंग्रेजों के बनाए कानून कायम रखे जा रहे है। नौकर’ शाही स्कूली सीटों और प्रगति के लाभांशो को जाति और धर्म के आधार पर ही वितरित किया जा रहा है। इससे सत्य निष्ठा तथा उसूलों के आधार पर काम करनें वालों को सुविधाओं और सहयोग का अभाव और घुटन महसूस होती है। विकास के नाम पर स्थापित परम्पराओं और नैतिक मूल्यों का उपहास किया जा रहा है। न्याय व्यवस्था इतनी लचर हो चुकी है कि अपराधियों को दण्ड दिलाना बहुत कठिन बन गया है। कानून का उल्लंघन और अपराधी का ठप्पा एक लाभकारी ‘शह बन गया है। पैसे को खुदा मानने वाले ऐसे नेता अफसर ठेकेदारों और मंत्रियों की भरमार है, जिनके लिए भ्रष्टाचार कोई मुद्दा है ही नहीं। लूट पर आधरित ऐसी व्यवस्था में जहां हर प्रभावशाली तबका अपना-अपना हिस्सा ले रहा है। किसी अफसर के यहां छापे में करोड़ों रुपये की नकदी बरामद होना तौहीन नहीं शान का विषय है। भ्रष्टाचार के इस महिमामंडन का प्रताप है कि दर्जनों आरोपी लोग धड़ल्ले से दोबारा चुनाव जीतकर कुर्सी पर काबिज हो चुके हैं। जब तक आरोप सिद्ध न हो जाए तब तक प्रत्येक व्यक्ति निरपराध होता है। ’कानून की यह अवधारणा आज भ्रष्टाचार निरोध के मार्ग में भारी अड़चन बन चुकी है। देश और समाज के जिम्मेदार लोग जब सक के घेरे में हों तब पुलिस व प्रशासन से निष्पक्षता की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? कानून बनाने वालों के हाथ में कालिख लगी हो और दब्बू जनता संवेदन ‘सून्य हो ऐसे में भ्रस्टाचार की पायदान पर देश का एक सीढ़ी चढ़ना क्या और उतरना क्या?
ईमानदारी का सबक सीखनें के लिए निशचय ही हमें फिनलैन्ड और न्यूजीलैण्ड जैसे देशो की व्यवस्था का अध्ययन करना चाहिए। वे केवल नैतिक मूल्यों की दुहाई देकर भ्रष्टाचार के दानव से नहीं लड़ते। उनके पारदर्शता और साख बहाली जैसे कुछ स्थापित मानदंड हैं उनकी व्यवस्था बड़े से बड़े के दोश उजागर करनें में कारगर हैं। टोनी ब्लेयर का बेटा हो या जॉर्ज बुश की बेटी दोष सिद्ध हुआ तो सजा पाएंगे ही तय है यथा राजा तथा प्रजा का सत्य अब भी पुराना नहीं पड़ा है।
त्रिपुरेश अवस्थी
कानपुर
इंडिया हल्ला वोल