माउंटबेटन ने एडविना-नेहरू प्रेम कथा को कभी रोकने की कोशिश नहीं की बल्कि अपनी बेटी पेट्रीशिया को एक पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी। उन्होंने लिखा, ‘यह बात तुम अपने तक ही रखना लेकिन एडविना और नेहरू साथ-साथ बहुत अच्छे लगते हैं। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। एडविना और नेहरू की कुंभ मेले के दौरान खींची गई एक तस्वीर के नीचे माउंटबेटन ने अपने हाथ से लिखा, ‘परिवार के साथ इलाहाबाद में। डिकी माउंटबेटन, एडविना, उनकी बेटी पामेला और नेहरू एक बार कार से मशोबरा गए। मशोबरा की पहाड़ियों में एडविना और नेहरू शाम को घूमने निकल जाते थे, डिकी जान-बूझकर कमरे में रहते थे। हर सुबह यहीं दोनों बागीचे में बैठकर चाय पीते और दिन में कार से आसपास के इलाकों में जाते। पामेला ने एक बार एक पत्रकार से कहा, ‘मुझसे पूछा गया है कि क्या मेरी मां एडविना और नेहरू के बीच प्रेम था? मेरा जवाब है-हां।
1948 में डिकी माउंटबेटन और एडविना लंदन लौट गए। इस दूरी के बावजूद नेहरू और एडविना का प्रेम कम नहीं हुआ। शुरू में एडविना और नेहरू हर रोज चिट्ठी लिखते थे, फिर हर हफ्ते और बाद में हर पखवाड़े। समय बीतने के बावजूद इन पत्रों की गंभीरता और गहराई कम नहीं हुई। नेहरू पर प्रधानमंत्री बनने के बाद काम का बोझ बढ़ गया था लेकिन एडविना के पत्र तनाव के बीच उन्हें राहत देते थे। इस दौरान एडविना हर साल दिल्ली आती थीं और कई-कई हफ्ते रहती थीं। इसका असर भारतीय राजनीति पर भी पड़ने लगा था और टीका-टिप्पणी होने लगी थी। मामला इस हद तक आगे बढ़ा कि 1953 में नेहरू को संसद में एडविना का बचाव करना पड़ा। विरोधी राजनीतिक दलों ने उनके संबंधों के बारे में उनसे सीधा सवाल पूछा था, जिसपर नेहरू ने कहा, ‘यह छोटे दिमाग की बकवास है।अप्रैल 1958 में नेहरू ने अचानक सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की कि वह प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर निजी जीवन बिताना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘यह सब कितना उबाऊ और सतही है। एडविना को खबर मिली तो उन्होंने लिखा, ‘तुम्हें आराम की जरूरत है। छुट्टी लेकर पहाड़ों पर चले जाओ। मुझे बताओ कि मैं तुम्हें खत लिखती रहूं या नहीं? अगर तुम नहीं कहोगे तो भी मैं तुम्हारी बात समझूंगी।नेहरू ने लिखा, ‘तुम्हें क्या लगता है कि महीनों गुजर जाएं और तुम्हारी चिट्ठी न आए, तो मुझे कैसा लगेगा? तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारी चिट्ठियों का मेरे लिए क्या मतलब है। नेहरू की एक दोस्त मैरी सेटन का मानना था कि नेहरू को एडविना की जितनी जरूरत थी उससे ज्यादा एडविना को नेहरू की। एडविना हमेशा नेहरू के आसपास रहने की कोशिश करती थीं। चाहती थीं कि नेहरू का एक भी शब्द हवा में गुम न हो जाए। नेहरू ने अपने एक खत में एडविना को लिखा, ‘मैं तुम्हारी चिट्ठियां इतनी बार पढ़ता हूं कि मुझे लगता है कि यह एक प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता। लेकिन तुम जानती हो कि घटनाक्रम और संयोग ने मुझे प्रधानमंत्री बना दिया।
मुकेश वाहने
बालाघाट, म.प्र.