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देव साहब की सदाबाहर फिल्में सदा याद दिलाएंगी उनकी

1950 के दशक में हिंदी फिल्म की दुनिया में एक ऐसा चेहरा था जिसने हिंदी फिल्म की दुनिया की तस्वीर ही बदल दी थी। उनकी लोकप्रियता का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह देश के किसी भी शहर में जाते तो उनके चाहने वालो में पुरुषो से ज्यादा महिलायें होती थी। उनके स्मार्टनेस की लडकियां इतनी दीवानी थी कि देव आनंद साहब का लड़कियों से बचकर निकलना सबसे बड़ा मुश्किल काम था।

अगर हम ये कहे कि देवानंद ने तो युवाओ को स्मार्ट बनाया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्यों कि देव साहब में लडकियों की बढ़ती दिलचस्पी को देखकर तब के युवो उनके जैसे दिखने के लिए उनके हर एक स्टाइल की कॉपी किया करते थे। देव आनंद और सुरैया की जोड़ी ने फिल्मों में कई हिट फिल्मे दी। देव साहब सुरैया को अपना जीवन साथी बनाना चाहते थे लेकिन सुरैया की नानी के विरोध के कारण दोनों एक न हो सके। जिसके बाद देव आनंद ने कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। लेकिन सुरैया की याद उनके दिलो में हमेशा रही। देव आनंद अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी सुरैया को यादकर भावविभोर हो गए थे। अभिनय के प्रतिभा के धनी देव आनंद ने 4 दिसंबर 2011 को अपनी आँखे हमेसा के लिए बंद कर लिया।

देवानंद साहब का फ़िल्मी जगत में शुरुआत काफी संघर्ष पूर्ण था।26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एकमध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे धर्मदेव पिशोरीमल आनंद उर्फ देवानंद का झुकाव पिता के पेशे वकालत की ओर नहीं होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज मे पूरी की। देवानंद आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास पैसे नहीं है और यदि वह आगे पढ़ना चाहते है तो नौकरी कर लें। देवानंद ने निश्चय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों न फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए। अपने सपनों को साकार करने के लिए देवानंद साहब मुंबई आ गए जहाँ पर उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

1945 में प्रदर्शित फिल्म ‘हम एक हैं’ से बतौर अभिनेता देवानंद ने अपने सिनेमा कैरियर की शुरुआत की। जिसके बाद देव आनंद ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा और भारतीय सिने जगत में लगभग छह दशक से दर्शकों के दिलों पर राज करते रहे। देवानंद ने कई सुपरहीट फिल्में की जिसमे मधुबाला (1950), बिरहा की रात (1950), नादान (1951), सज़ा (1951), इंसानियत (1955), पॉकेटमार (1956), कालापानी (1958), सरहद (1960), मंजिल (1960), तेरे घर के सामने (1963), गाइड (1965), ज्वेल थिफ (1967), जॉनी मेरा नाम (1970), हरे रामा हरे कृष्ण (1971), हीरा पन्ना (1973) जैसी फिल्मो में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। देवानंद को सबसे पहला फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म कालापानी के लिए दिया गया। इसके बाद 1965 में भी देवानंद फिल्म गाइड के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। देव आनंद के इस कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2001 पद्म भूषण सम्मान एवं 2002 में हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

यह बात बहुत कम ही लोग जानते है कि देव आनंद राजनीति में भी आना चाहते थे। इमरजेंसी के दौरान देव आनंद ने नॅशनल पार्टी आँफ इंडिया का गठन किया। इसके बैनर तले उन्होंने इ सिर्फ इमरजेंसी का विरोध किया बल्कि बाद में जब 1977 में आम चुनाव हुए तो इंदिरा जी के विरोध में प्रचार किया लेकिन जल्द ही देव आनंद का राजनीति से मोह भंग हो गया। कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी पार्टी भंग कर दी और दुबारा राजनीति में कदम नहीं रखा।

देव आनंद का लगाव फ़िल्मी जगत से इतना ज्यादा था कि देव साहब ने अपने ढलती उम्र के बाद भी सेन्सर (2001), लव एट टाइम्स स्कवेयर (2003),अमन के फ़रिश्ते (2003), मि. प्राइम मिनिस्टर (2005) और देव आनंद नें मूवी चार्जशीट (2011) में अभिनय किया। इस मूवी में देव आनंद नें “CBI Officer” की भूमिका निभाई। आज देव आनंद हमारे बीच भले न लेकिन उनकी सदाबहार फिल्मे हमें हमेशा उनकी याद दिलाती रहेगीं।

मानेन्द्र कुमार भारद्वाज
इंडिया हल्ला बोल

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