पंचायत मतलब सबकुछ गलत क्यों?

कभी फरमानों तो कभी बेजा शोषण के अरमानों के लिए खाप पंतायतें अपने पाप के साथ चर्चाओं में रहती हैं। इसे लोकतंत्र का चरम कहिए या फिर अतिश्योक्ति। या यूं भी कह सकते हैं कि यह मौजूदा यूनिफॉर्म सिस्टम के खिलाफ एक अजीब सी आवाज भी है। हम यह भी जानते हैं कि गांधी के ग्राम सुराज की परिकल्पना इन्हीं पंचायतों की सीढ़ी से साकार हो सकती है। मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में इन्हीं पंचायतों की गरिमा और गर्व की बात की जाती है। इन्हीं पंचायतों में मानव के स्वभावगत व्यवस्थापन की कल्पना भी की जाती रही है। लेकिन अफसोस कि अब खापें खंडहर होकर भी भूतिया सोच और फरमानों की एशगाह सी बन गईं हैं।

हमारे गांव में किसी दौर में एक ऐसी ही पंचायत हुआ करती थी। नजदीकी गांव तक से लोग इस पंचायत में जमीनी विवाद से लेकर हर उस बात के लिए आते थे, जो कि यहां सच्चे न्याय के लिए संभावित नजर आती। सालों इस पंचायत ने न्याय दिया। मुझे याद है 1993 में एक बड़े किसान के हलवाए (नौकर) को उसके ही रिश्तेदारों ने लठ से मार-मारकर अधमरा कर दिया था। यह घटना बिल्कुल गुपचुप तरीके से हुई। हलवाए को मरा मानकर मारने वाले घर आ गए। लेकिन दूसरे दिन जब हलवाए की खोज की गई तो वह खेत में मरणासन्न मिला। पुलिस को बुलाने जैसी बातें भी की गईं। साथ ही गांव की यही पंचायत भी सक्रिय हो गई। सक्रिय इसलिए नहीं कि कोई उलूल-जुलूल फरमान जारी करेगी। सक्रिय इसलिए भी नहीं कि पुलिस के दखल को कम करेगी। और सक्रिय इसलिए भी नहीं हुई कि पंचायत तय कर दे कि कौन हत्यारा है। पंचायत के लोगों ने एक राज्य की व्यवस्था की तरह आनन-फानन में पंचों को बुलाया। पूरे गांव के लोग जमा हुए।

एक संसद सा माहौल। एक ऐसी संसद जहां पर प्रतिनिधि चुना नहीं, उसका राज्य में पैदा होना ही चुने जाने के बराबर है। हर कोई खुलकर इस पंचायत में बात कर सकता था। पंचायत का मुख्य विचार यही निकला कि यह महज एक हलवाए की हत्या के प्रयास का मामला नहीं, बल्कि गांव की शांति का भी मसला है। पंचों ने इस मौके पर बहुत ही संजीदा और जिम्मेदाराना रुख अपनाया। पंचायत ने पुलिस को पड़ताल में साथ देने के लिए युवाओं की टोली बनाई। बुजुर्गों ने अपने अनुभवों को सांझा किया। यहां पर न तो रॉ जैसी जासूस एजेंसी थी, न सीबीआई जैसी जांच एजेंसी। मगर इस पंचायत ने ऐसे किया जैसे एक राज्य में कोई सरकार करती। पुलिस के साथ मिलकर पूरे गांव ने एक सप्ताह के भीतर हत्यारों की गतिविधियों को पकड़ लिया। मरणासन्न हलवाया बयान देता इससे पहले ही अपराधी हिरासत में थे। यह कहानी कहने का मतलब महज इतना है कि गांवों की यह पंचायतें खाप नहीं हैं। न ही यह ऐसी हैं जिनके वजूद को खत्म कर दिया जाए। अच्छा होगा कि इनके बारे में नकारात्मक राय फैलाने की बजाए इन्हें नैतिकता और प्राकृतिक न्याय के प्रति उन्मुख किया जाए। और गांधी के ग्राम सुराज की परिकल्पना को साकार बनाया जाए।

वरुण के सखाजी

Check Also

World literacy day । विश्व साक्षरता दिवस

इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि जिस देश और सभ्यता ने ज्ञान को …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *