जहां एक ओर देश महंगाई ,भ्रष्टाचार व अन्य परेशानियों से जूझ रहा है। ऐसे में एक बार फिर आतंकवादियों ने राजधानी दिल्ली में हाईकोर्ट पर हमला करके खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस की नाकामी की पोल खोल कर रख दी है। चार महीने के भीतर तीन हमले होना भारत की ढीली सुरक्षा व्यवस्था को बयां करता है। लेकिन इस बार दिल्ली दहल गई। आखिर कब तक आतंकवादी अपने मंसूबो में कामयाब होते रहेंगे और हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी। संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरु के रिहाई को लेकर आतंकवादियों ने इस काम को अंजाम दिया है। अब सवाल या उठता है कि जब अफजल पर सारे दोष सिद्ध हो चुके हैं तो हमारी सरकार इतना उदारपूर्ण रवैया क्यों इन आरोपियों के खिलाफ अपना रही है। अमेरिका में 9/11 हमले के बाद अभी तक कोई आतंकी घटना नहीं हुई है। कारण वहां कि सरकार इन आतंकवादियों के खिलाफ काफी सशक्त है। लेकिन भारत में हमेशा इसके पीछे राजनीति होती रहती है। यही वजह है कि घटना के छह दिन बाद भी अभी तक खुफिया एजेंसियों के हाथ कुछ सुराग नहीं लगा है। जब देश में कोई बड़ी घटना घट जाती है, तो हाई अलर्ट घोषित कर दिया जाता है। उसके बाद वही हाल फिर हो जाता है।
आखिर कब तक मासूमो कि जान जाती रहेगी। गौर करने की बात यह है की यह केवल प्रशासनिक विफलता का ही मामला नहीं माना जाना चाहिए। शोक प्रकट करने, बयानबाजी करने से, मुवाजा की घोषणा करने से आतंकवाद का खात्मा नहीं हो सकता है। क्या इतना होने के बाद भी देश आतंकवादियों को बर्दास्त करता रहेगा? या फिर अमेरिका की तरह इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करेगा या फिर हर बार की तरह हमारे राजनेता इन आतंकवादियों की कार्यतापूर्ण और बर्बर कार्यवाई कहकर अपना पल्ला झाड़ते रहेंगे। क्या आम आदमी के जीवन की कोई कीमत नहीं है। इन आतंकी घटनाओ से चकित नहीं होना चाहिए। क्योंकि हमारी सरकार के पास न तो इन क्रूर आतंकवादियों से निपटने के लिए कोई मजबूत सुरक्षा तंत्र और न ही राजनीतिक इच्छा शक्ति। आज पूरा देश भारत इन आंताकियो के खिलाफ़ कुछ नहीं कर पा रहा है। एक बार फिर इसकी जाँच एनआईए को सौपी गई है। जिसके पास पहले से ही इनसे सम्बंधित मामले लंबित पड़े है। ऐसे में क्या होम मिनिस्टर चिदंबरम का दोबारा एनआईए को सौपना उचित है। ऐसी दशा में राजनेताओ को जाग जाना चाहिए। और सुरक्षा से जुड़े़ मुद्दे पर राजनीति करने से बाज आना होगा। नहीं तो यह कहना हास्यपद नहीं होगा कि भारत इन आतंकवादियों से निपटने में सक्षम नहीं हैं।|
अम्बरीश द्विवेदी
इलाहाबाद