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परिवारवाद के सहारे सपा

परिवारवाद की संस्कृति भारतीय राजनीति की जड़ो में रच बस गई है। इसकी
तरक्की का ग्राफ इतनी तेजी से बढ़ा है की बड़े – बड़े लोग हैरत में पड़ जाये। देश दुनिया में हर जगह ऐसा ही नजारा है और यूपी भी इससे अछुता नहीं है। यहाँ आर्थिक और सामाजिक विकास का संकट भले  ही हो लेकिन परिवारवाद की राजनीति खासा प्रगति पर है। उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र जितना फल-फुला है उससे कही ज्यादा परिवारवाद हावी रहा है। राजनीतिक विरासत संभालने और उसी आधार पर सियासत में मुकाम हासिल करने की कवायद वर्षो से जारी है।

पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश काफी अहम् माना जा रहा है। यहाँ पर मिली जीत – हार का प्रभाव केंद्र तक पड़ता है। जिसके लिए राजनीतिक दलों ने चुनाव में अपने-अपने बाहुबलियों को उतर रखा है। बसपा प्रमुख अपनी सत्ता का भरपूर उपयोग कर रहा है। अगर गौर किया जाये तो बसपा के बाद सपा सत्ता की सबसे बड़ी दावेदारी पेश कर सकती है। पार्टी कार्यकर्ताओ का मानना है कि 74 वर्षीय मुलायम सिंह यादव का यह आखिरी चुनाव हो। ऐसे में सवाल उठता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? ऐसे में और पार्टियों के नेताओं की तरह मुलायम सिंह भी यही चाहेंगे कि सत्ता की बागडोर परिवार में ही रहे। ऐसे में सपा के युवराज कहे जाने वाले अखिलेश यादव हो सकते है। अटकले तो ये भी लगाये जा रहे है कि प्रतीक भी इसके लिए दावेदार हो सकते है लेकिन प्रतीक तो अभी राजनीति से कोसों दूर है। वैसे राजनीति की गणित के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है कि कब क्या हो जाये।

उधर अखिलेश सिंह यादव पूरी ताकत के साथ सपा की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लेन में लगे है लेकिन अगर देखा जाये तो उनमें नेता वाले गुण अभी आना बाकी है। ऐसे में दूसरी पत्नी साधना गुप्ता पर दबाव भी बढता जा रह है। माना जा रहा है कि प्रतीक को मुलायम सिंह यादव अगर इस विधान सभा चुनाव में नहीं उतारेंगे तो आगामी 2014 के लोकसभा चुनाव में साईकिल की सवारी जरुर करायेंगे। देखने वाली दिलचस्प बात यह है कि बदायूं की संसदीय सीट भी सपा के खाते में है। यहाँ पर उनके भतीजे धर्मेन्द्र विराजमान है लेकिन अपने छोटे बेटे प्रतीक को चुनावी मंच पर उतारने की जरुर सोच रहे है। यही नहीं मुलायम सिंह यादव ने अपनी बड़ी बहूँ डिम्पल को फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र में उतारा था वो बालीवुड अभिनेता राजबब्बर से हार गई थी।

अगर इतिहास पर गौर करे तो वंशवाद और परिवारवाद की परम्परा को कांग्रेस ने न केवल गति बढाया बल्कि यह जनमानस को बरसो बरस तक यह समझाने में भी
कामयाब रही है कि देश को केवल नेहरू गाँधी का परिवार ही आगे ले जा सकता है। इसी का परिणाम है कि आज सपा भी परिवार को बढावा दे रहा है।

अम्बरीश संग मानेन्द्र

इंडिया हल्ला बोल

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