मुस्लिमों को रिझाने में लगी पार्टियाँ

विधान सभा  चुनाव  जैसे – जैसे नजदीक आते जा रहे हैं। ऐसे में हर पार्टी वोट बैंक के खातिर अपने तरकश से तीर निकालना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उतराखंड आदि राज्यों के विधान सभा चुनाव के नजदीक आने पर अब हर पार्टी मुसलमानों को रिझाने की कोशिश में लगी है। कांग्रेस दरगाहों के मौलानों के जरिये मुसलमानों को साधने की कवायद कर रही है और इसकी शुरुआत दिग्विजय सिंह उत्तर प्रदेश के प्रमुख दरगाहों में जाकर मौलानों से मिलकर उनको रिझाने की कोशिश में लगे है। इसके साथ ही
साथ सच्चर कमेटी  की सिफराशें लागू  करने का भरोसा  भी दिला रहे हैं। 

अगर गौर किया जाय तो विधान सभा  चुनाव की शुरुआत देश के सबसे बड़े और मुस्लिम बाहुल्य जन संख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश से हो रही है। यूपी सहित पाँच राज्यों के बाद देश के  राज्यों में भी विधान सभा चुनाव होना है और इसके बाद लोकसभा के। इसलिए हर पार्टी यूपी फार्मूले का लाभ अन्य
राज्यों के विधान सभा चुनाव में लेना चाहेगी। देश के कई ऐसे निर्वाचन क्षेत्र है जहाँ पर मुस्लिम जमात चुनावी परिणाम को प्रभावित करते है।

अगर हम फलैश बैक में जाकर देखे तो आजादी के बाद भी मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को अपना हितैषी मानते थे। लेकिन कुछ दशको में मुस्लिम मतदाता सपा, बसपा एवं भाजपा के खेमे में जाते रहे है। इसका तजा उदाहरण यूपी में बसपा एवं मध्य प्रदेश में भाजपा है।  इसी बात को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर विभिन्न पार्टियों के नेताओ ने वोट बैंक के लिए मुस्लिमो को
रिझाने में लगे है। अभी कुछ दिन पहले यानि 17  नवम्बर को मुख्य मंत्री मायावती ने मुस्लिमो को आरक्षण देने की बात कही, साथ ही साथ केंद्र सरकार ने भी जिस प्रकार से हरी झंडी के संकेत देने शुरू कर दिए है। इससे तो ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में आरक्षण  के लिए मारामारी होना तय है।

अगर देखा जाय तो यह  वोट बैंक की राजनीति के लिए महज यह चुनावी स्टंट है। वहीं दूसरी तरफ सपा यूपी में एक बार फिर से साथ में आने के लिए अपने परम मित्र आजम खां को  एक बार फिर पार्टी में शामिल कर लिया है। ताकि मस्लिम समुदाय के समीकरण को हल किया जा सके। वहीं बसपा भी मुस्लिम और ब्राहमणों को साथ मिलाकर अपने चुनाव का आगाज करना चाहती है।

अगर देखा जाय तो मुस्लिम सियासत के आजादी के बाद तीन दौर थे। पहला 1952 -92  तक का दौर जिसमे यह जमात कांग्रेस के साथ रहा। 1952  के बाद स्थानीय हितो के आधार पर स्थानीय दलों को वोट देते रहे हैं। अपने को मुस्लिमो को हितैषी कहने वाले नेता उनकी वास्तविक समस्याओ से काफी दूर होते हैं, लेकिन जब चुनाव की बरी आती है तब ऐसे में इन नेताओ को हर
समुदाय के लोग याद आते हैं। खास कर मुस्लिम, क्यों कि यह समुदाय काफी हद तक चुवावी परिणाम को बदल सकता है। ऐसे में हर पार्टी की नजर इनकी ओर होती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम मतदाता को अपनी ओर किया जा सके।

अम्बरीश द्विवेदी

इंडिया हल्ला बोल

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