देश में बह रही नयी बयार “सत्यमेव जयते”….

पिछले कुछ समय से देश में सत्य की कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है। यह सत्य अब देश ने जान लिया है की हमारी राजनीति और उसके राजनीतिज्ञ अब सत्य का साथ नहीं दे रहे हैं। यहाँ मै आमिर खान के शो सत्यमेव जयते की बात न करके देश के वास्तविक सत्यता की बात करना चाहता हूँ। देश में अन्ना आन्दोलन की धमक एक बार फिर से आ रही है। वहीं आन्दोलन जो पिछले मानसून में देश में एक नयी पछुवा बयार लाया था। इस बार भी वही मानसून आने वाला है। यहाँ यही कहा जा सकता है की देश ने सत्य का मर्म जाना है और देश की जनता के उसी सत्य की बांह पकड़ कर टीम अन्ना अपने आन्दोलन को इसबार भी आगे ले जाने की तैयारी पर है। इसबार तो टीम अन्ना ने प्रधानमन्त्री सहित पंद्रह मंत्रियो पर भ्रष्टाचार के आरोप तय कर रखे हैं। यह भी कह रही है अगर पी एम पाक साफ़ हैं तो कोयला ब्लाक आवंटन मामले की जांच करवाएं, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। यह तो रहा वर्तमान समय के सत्य का एक पक्ष।

 

सत्य का दूसरा पहलू यह भी है सरकार के इस बार के कार्यकाल का समय भी कुछ उल्टा ही चल रहा है। राज्यों के चुनावों , उपचुनावों में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद सरकार इस समय मंहगाई और देश की लगातार आर्थिक साख के पतन से सरकार की लगातार चिंता बनी हुई है। इसके बाद भी हमारी सरकार जनता को दिलासा दे रही है की उम्मीद कीजिये की आने वाले समय में सब अच्छा होगा। इतना तो सत्य देश की जनता जान रही है की सरकार को मंत्री नहीं ब्यूरोक्रेट और पूंजीपति चलाते हैं और इस सरकार में इनका दखल कुछ ज्यादा ही है। तभी तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में आये गिरावट के बाद भी सरकार का दावा है की तेल की कीमतों में कोई कमी नहीं आई है। लिहाजा हम अभी कोई रियायत नहीं कर रहे हैं। उधर आने वाले राष्ट्रपति चुनावों के पहले अपने सहयोगी दलों का ही विरोध सरकार के लिए एक नयी मुसीबत पैदा किये हुए है। एक ओर संगमा ने आदिवासी राष्ट्रपति की मांग लेकर नवीन पटनायक और जयललिता का समर्थन भी प्राप्त कर लिया। अभी तक कांग्रेसनीत सरकार कोई नाम नहीं तय कर पायी की जिसको लेकर आम सहमति बना सके। 

पिछले दिनों राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के घोटाले का भी सत्य सामने आ ही गया। जिसमे उत्तर प्रदेश की 2005 से लेकर पिछली सरकार के कारनामो का जिक्र किया गया। जिसमे यह भी कहा गया की कैसे इन छ वर्षो में सरकारों को केंद्र द्वारा करीब 8657 करोड़ रुपये इस योजना के क्रियान्वयन के लिए आवंटित हुए और अधिकारियों और डाक्टरों ने इसमें से पांच हजार करोड़ रुपये की बंदरबांट कर ली। सरकार की नाक के नीचे हुए घोटाले में वरिष्ठ अधिकारियों के शामिल होने के सबूत हैं, ऐसे में अब मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों पर भी उंगली उठ रही हैं।कैग की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2005 से मार्च 2011 तक एनआरएचएम में लोगों की सेहत सुधार के लिए 8657.35 करोड़ रुपये मिले, जिसमें से 4938 करोड़ रुपये नियमों की अनदेखी कर खर्च किए गए। करीब तीन सौ पेज की रिपोर्ट में लिखा गया है कि एनआरएचएम में 1085 करोड़ का भुगतान बिना किसी के हस्ताक्षर ही कर दिया गया। बिना करार के ही 1170 करोड़ रुपये का ठेका चंद चहेते लोगों को दिया गया। निर्माण एवं खरीद संबंधी धनराशि को खर्च करने के आदेश जारी करने में सुप्रीम कोर्ट एवं सीवीसी के निर्देशों का पालन नहीं किया गया।

परिणाम स्वरूप जांच में केंद्र से मिले 358 करोड़ और कोषागार के 1768 रुपयों करोड़ का हिसाब राज्य स्वास्थ्य सोसाइटी की फाइलों में सीएजी को नहीं मिला। 23 जिलों की सीएजी जांच के दौरान एनआरएचएम में मिली धनराशि के खर्च का लेखाजोखा तैयार करने के दौरान सच्चाई सामने आई। आने वाले समय में यह सत्य देश में एक नयी बहस के लिए तैयार हो गया है और जनता ने इसे समझ भी लिया है।

वैसे देश में अभी आने वाले समय में कुछ नए सत्य के प्रमाण आयेंगे जैसे आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी कि गिरफ्तारी हुई और सी बी आई ने उनसे पूंछतांछ के लिए अपनी हिरासत में लिया , इसके पहले टू जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में एक एक करके सभी आरोपियों कि जमानत हो गयी अब वे सलाखों से बाहर आकर फिर से अपने लिए कवच तैयार करने में जुटे हैं। उधर देश के सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुके आरुषी हत्याकांड में अब तो लगभग यह तय ही हो गया कि अंततः इज्जत कि खातिर ही माँ बाप ने अपने बेटी की हत्या कर दी थी। देश को एक नया जनरल यानी सेनाध्यक्ष मिला गया है जो पिछले जैसे ही हैं क्योंकि विवाद तो उनके आने के पहले ही लग चुके हैं जम्मू में फर्जी एनकाउन्टर और कांगो के संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान में उनपर यौन उत्पीडन का आरोप लगा है। इसके बाद देश कि मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा भी अपने अन्दर ही द्वन्द में लड़ रही है | मुद्दा है कि उनके अन्दर महत्वाकांक्षा पाले हुए कई है कि देश के प्रधानमन्त्री बन सकते है लेकिन इसको लेकर अभी लड़ाई और हो सकती है , जहाँ संघ और पार्टी के कुछ नेताओ में अभी खींचतान चल रही है।

इन सभी बातो का जिक्र मैंने यहाँ इस लिए किया कि यह बातें कहीं कहीं सत्य से वास्ता जरुर रखती है और देश में सत्य की एक नयी परिभाषा बन रही है जिससे एक रहस्य और रोमांच का तड़का हो जो कुछ वक्त के लिए हमें स्तब्ध कर दे और यह बातें हमें आने वाले समय में स्तब्ध कर सकती हैं। उस समय हम केवल यही कह सकते हैं की शायद यह गलत है और यह नहीं होना चाहिए।

अभिषेक द्विवेदी

{इण्डिया हल्लाबोल, दिल्ली}

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