साल दर साल जब दिसंबर की 6 तारीख आती है तो अयोध्या-फैजाबाद के जुड़वा शहरों की धार्मिक, राजनितिक और सामाजिक हलचलें बढ जाती हैं। धार्मिक स्तर पर दो विशेष धर्म एक दुसरे के दिए हुए कड़वी यादों को ताज़ा करते हैं। राजनीतिक स्तर पर एक विशेष दल जिसने भारत में “हिंदुत्व “का ठेका ले रखा है वह इस दिन को अपने किये हुए उस कार्य का गुणगान करता है जिस कृत्य ने उसे भारतीय राजनीति में एक विशेष पहचान दिलाई, लेकिन इन सबसे अलग हटकर अगर सामाजिक स्तर पर चर्चा करें तो इन दोनों शहरों में किसी भी धर्म किसी भी मज़हब में कोई फरक नहीं पड़ता, कोई असर नहीं पड़ता। क्योंकि यह अयोध्या फैजाबाद की एकता और अखंडता के साथ गंगा जमुनी तहजीब असली की तस्वीर दिखाता है। यह बातें मै इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं भी इसी पवित्र भूमि की पैदाइश हूँ, इस बात का मुझे गर्व भी है। इन सबसे अलग हटकर यदि हम अयोध्या की बात करें तो इस शहर में कौमी एकता आज भी जिन्दा है।
समय समय पर राजनीतिक दल इसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली होने के नाते उनका भी राजनीतिकरण होता है। उनका अनन्य भक्त होने का दावा करने वाले दल को भी उनकी याद तभी आती है जब लोकतंत्र का पर्व यानी “चुनाव” आता है और उसी दौरान उनका “मंदिर निर्माण” भी शुरु हो जाता है। यहाँ की जनता इन चुनावी पैतरों को भली भांति जानती है। इस शहर की असली एकता की तस्वीर आपको अगर देखनी हो तो दशहरा के दुर्गापूजा मूर्तीविसर्जन के दौरान देखने को मिल जाएगा जब मुस्लिम उलेमा और बिरादरी वाले मूर्तिविसजन के रथों पर पुष्प वर्षा करते है। पिछले वर्ष जब रामजन्म भूमि पर न्यायालय का फैसला आने वाला था तब उस दिन पूरे देश में अनजाने भय का माहौल था लेकिन इन सबके विपरीत यहाँ ऐसा कोई माहौल नहीं था, अपितु फैसला आने के बाद सभी बिरादरी वाले प्रेम से मिले जुले भी ,कुछ राजनीतिक संगठनो के असंतोष को छोड़ दें तो माहौल पूरी तरीके शांतिपूर्ण था।
अयोध्या के राजनितिक विवाद का इतिहास —-
सन १५२८ –मुग़ल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर मस्जिद का निर्माण करवाया जहाँ हिन्दुओं का दावा है की वहां भगवान् राम की जन्म भूमि थी, वहां एक मंदिर था।
१८५३ — विवादित भूमि पर कौमी हिंसा सम्बन्धी घटनाओं का दस्तावेज में पहला प्रमाण दर्ज।
१८५९ — ब्रिटिश अधिकारीयों ने बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग किया अंदरूनी हिस्सा मुस्लिमों को ,बाहरी हिस्सा हिन्दुओं को मिला।
१८८५ — महंथ रघुवीर दास ने याचिका दायर की, राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, मगर एक साल बाद जिला अदालत फैजाबाद ने याचिका ख़ारिज कर दी।
१९४९ — मस्जिद के भीतर भगवान् राम की प्रतिमाओ का प्राकट्य। मुस्लिमों का दावा हिदुओं ने प्रतिमाओं को रखवाया। मुस्लिमों का विरोध, दोनों पक्षों ने दीवानी दायर की। सरकार ने परिसर को विवादित घोषित किया और द्वार बंद किया।
१८ जनवरी १९५० — मालिकाना हक को ले कर पहला विवाद दायर, गोपाल सिंह विशारद ने दायर की उन्होंने पूजा अधिकार की मांग की।
२१ अप्रैल १९५० –उत्तर प्रदेश सरकार ने पूजा पर लागाई रोक, रोक के खिलाफ अपील।
१९५० — रामचंद्र परमहंस ने एक अन्य वाद दायर।
१९५९ — विवाद में निर्मोही अखाडा भी शामिल हुआ और तीसरा वाद दायर किया विवादित, भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहाकि अदालत का रिसीवर हटाया जाय और खुद को संरक्षक बताया।
१८ दिसंबर १९६१ — सुन्नी वक्फ बोर्ड भी विवाद में शामिल मस्जिद के आस पास की भूमि पर अपना मालिकाना हक का दावा।
१९८६ — जिला न्यायालय ने हरिशंकर दुबे की याचिका पर “मस्जिद “के फाटक खोलने के आदेश दिए और “दर्शन “की अनुमति प्रदान की। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी गठित की।
१९८९ –विहिप के देवकी नंदन अग्रवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की मालिकाना हक भगवान् राम के नाम पर घोषित हो।
२३ अक्टूबर १९८९ –फैजाबाद में विचाराधीन सभी चारों वादों को इलाहाबाद की विशेष पीठ में भेजा गया।
१९८९ –विहिप ने विवादित मस्जिद के समीप की भूमि पर राममंदिर का शिलान्यास किया।
१९९० –विहिप समर्थकों ने मस्जिद का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त किया।
६दिसम्बर १९९२ –विवादित मस्जिद को शिवसेना और विहिप, भाजपा के समर्थकों ने ढहाया ,देश में दंगे भड़के ,२००० से ज्यादा लोग मारे गए।
१६ दिसंबर १९९२ –विवादित ढांचे को गिराए जाने की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन। जाँच ६ महीनो में पूरी हो जाने को कहा।
जुलाई १९९६ –इलाहबाद हाईकोर्ट ने सभी दीवानी वादों पर एक साथ सुनवाई करने को कहा।
२००२ –हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई करने को कहा। कहा की पता लगाएं की विवादित भूमि के नीचे कोई मंदिर था।
अप्रैल २००२ —हाईकोर्ट के न्यायधीशों ने सुनवाई शुरु की।
अगस्त २००३ –सर्वेक्षण में कहा गया की खुदाई में मंदिर के प्रमाण मिले।
जुलाई २००५ –संदिग्ध ५ आतंकवादियों ने विवादित भूमि पर हमला किया, पांचो मारे गए।
जून २००९ — लिब्रहान आयोग ने १७ साल बाद अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी ,इस बीच आयोग का कार्यकाल ४८ बार बढ़ाया गया।
जुलाई २०१० –हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा।
३० सितम्बर २०१० —हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
यहाँ अयोध्या विवाद के इतिहास पर नजर डालना केवल एक सामान्य क्रिया के अंतर्गत था। कुल मिलाकर अयोध्या के तहजीब में नजाकत और नफासत दोनों है। अंग्रेजों के समय में यह अवध की राजधानी होती थी। नवाबो का यहाँ निवास होता था। इसी लिए यहाँ की सभ्यता और संस्कृति में गंगा जमुनी तहजीब का समावेश है और विशवास भी है की आने वाले समय में यह अखंड भारत के लिए मिसाल भी बनी रहेगी।
अभिषेक दुबे
इंडिया हल्ला बोल