“चुनावी बोतल से निकला आरक्षण का जिन्द”

मुस्लिम आरक्षण की मांग करके उत्तर प्रदेश की मुखिया मायावती ने चुनाव के पहले एक नई बहस पैदा कर दी है। वैसे देखा जाए तो यह भी एक चुनावी फंडा साबित होता दिख रहा है ,क्योंकि कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो चुनाव के पहले की राजनीति कभी जन हित की नहीं कहीं जाती, क्योंकि इसमें स्वार्थपरकता ज्यादा दिखाई पड़ती है। ऐसे में सभी जाति के सम्मलेन के बाद उनका अगला निशाना मुस्लिम ही लग रहे हैं।

इसी के सन्दर्भ में उन्होंने मुस्लिमो के आरक्षण की मांग को लेकर विगत २४ नवम्बर को केंद्र को पत्र लिखा था और कहा था की मुस्लिमो को ओ बी सी कोटे में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। यह चुनाव के पहले मुस्लिम मतदाताओ को लुभाने के लिए एक कदम था उसी के जवाब में माया को केंद्र का पलटवार करते हुए ये पत्र भेजा गया की “हम मुस्लिमो के आरक्षण के प्रति कटिबद्ध हैं और उनके बेहतरी के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसके बाद केंद्र ने आरोप लगाते हुए ये कहा की मायावती सरकारयदि मुस्लिमो की हितैषी है तो दुसरे राज्यों की तरह अपने यहाँ भी मुस्लिम आरक्षण की पहल क्यों नहीं कर रही हैं, इसके पहले ही केंद्रीय नौकरियों में आरक्षण की मांग क्यों उठा रही हैं ?फिर इसके बाद सवाल भी उठाया कि कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, केरल की तरह अपने यहाँ भी मुसलमानों को जाति के आधार पर ओ बी सी सूचि में क्यों नहीं शामिल करती?

इसका जवाब मायावती अपनी दूसरी चिठ्ठी में यह देती हैं कि१९९५ में जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बनी तभी उन्होंने मुस्लिमो की २३ जातियों को ओ बी सी कोटे के तहत जाति प्रमाण  पत्र दिलवा रही है। शुरूआती दौर के ये आरोप प्रत्यारोप अभी समय के साथ और बढने के आसार सम्भावना है, लेकिन इसके बाद यही कहा जा सकता है कि चाहे कोई जाति हो आरक्षित या अनारक्षित, उनकी भावनाओ के साथ इस तरीके का खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। मायावती और केंद्र सरकार इनकी बेहतरी के लिए सकारात्मक सोच रखती है तो उन पर अमल करे अगर ऐसा नहीं करती तो यह पूरे कौम के साथ साथ देश से भी खिलवाड़ होगा और इसका जवाब उन्हें चुनाव में मिल सकता है। क्योंकि “आरक्षण रूपी जिन्द इन सरकारों को सिर्फ चुनाव के समय परेशान करता है और बाद में इसको फिर बोतल में बंद करके रख दिया जाता है।”

अभिषेक दुबे

इंडिया हल्ला बोल

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