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आंतकियों की नजर दिल्ली पर…

राजधानी दिल्ली में कुछ ऐसे भी दिन रहे जिनको याद करने पर आंखे नम हो जाती हैं, जिनकी दहशत से लोगो के कदम थम जाते मगर ये दिल्ली की दिल्लगी है कि जो रगड़ रगड़ कर चलने को मजबूर करती हैं।

देश की राजधानी ही नहीं सब के दिलो में रानी की तरह बसनें वाली दिल्ली आज कल सब के नजर पर चढ़ गयी हैं। चाहे वो नेता हो विद्दार्थी हो फिल्मकार हो या काम की ललक रखने वाले मजबूर लोग हो…पर इन लोगो की मौहब्बत से दिल्ली घबराती नहीं, घबराती हैं तो बस आतंकी दुशमनों से जो खुद तो रहते नही औऱ दूसरो का घरौदा उजाड़ जाते हैं। आज की ही बात नही हैं अगर देखा जाय तो पिछले कुछ सालो का रिकॉर्ड तो पता चलता है, कि आतंकी गतिविधियों ने किस कदर दिल्ली को खोखला कर दिया हैं। देश में अमन चैन की बात सब करते है। लेकिन देश इससे अछुता नजर आता हैं। जो इसका दूसरा कारण है, देश मे लोगो का संगठन या यूँ कहे आपसी मेल जोल का अभाव इस कारण भी देश मे कहीं ना कहीं काले बादल छाते रहते है। और देश के आपसी मेल जोल तथा प्रेम के बारे में हमारे पड़ोसी देश को बाखूबी पता है। जिसके कारण वह इसका फायदा ऊठाते रहते हैं। चाहे वो इण्यिन मुजाहिद्दीन हो, आईएसआई हो, या ओसामा की गैंग अलकायदा या लशकरे तैयबा हो यह सब बारी बारी से देश की शान पर अपनी तपीश की गर्मी देते रहते हैं।

जिससे भारत सिर्फ औऱ सिर्फ अपनी हिफाजत करने के पिछे परेशान रहता है। और उनके अपनाये हुए तरीको के बारे मे शोध करता है! कैसे किया…औऱ तब भी नहीं पता लगा पाते की किसने यह वारदात को अंजाम दिया चाहे वो ११ फरवरी २००४ की आईआईटी गेट की घटना हो या २९ अक्टूबर २००५ में दिल्ली मे २० मिनट में तीम ब्लास्ट हुए सरोजनी नगर, पहाड़गंज और गोविन्दपुरी में जिसमें लगभग ७० लोगो की जान गयी। लेकिन ब्लास्ट पर कोई रोक नही लग पायी १९ सितम्बर २०१० जामा मस्जिद गेटनम्बर तीन विदेशीयो पर हमला। लेकिन इससे पहले १३ सितम्बर २००८ गफ्फार मार्केट बारखम्भा सेंट्रलपार्क वा ग्रटरकैलाश मे २६ मिनट में पाँच धमाके हुए औऱ लोग अस्पताल से वापस आये भी नहीं थे कि महज चौदह दिन बाद फिर से दिल्ली दहल गयी २७ सितम्बर २००८ को महरौली में ब्लास्ट हुआ अब कबतक ऐसे जगन्ह अपराध को लोग मजबूर रहेगे सहने के लिए। ये सब वो हादसे है। जिसके बाद से दिल्ली में लोग डर डर कर रहते है और दिल्ली ही नही देश भर में इनका कहर जारी रहता है जिससे हर बडे शहरो में लोग डर के साथ रहते है। इन सब हादसो के बाद थोड़ा अन्तराल जरुर आया पर रुका नहीं। चाहे वो मुम्बई हो या दिल्ली २०११ में मई से फिर शुरु हो गया आतंकीयो का खेल २५ मई २०११ को दिल्ली के हाईकोर्ट गेट नं. सात पर आतंकी डैमो देखा गया औऱ मुम्बई मे इसका बड़ा नमुना देखने को मिला लेकिन फिर भी सरकार ने ध्यान से जनता की तरफ नही देखा। औऱ ना अपने जांच एंजेसी की तरफ, इससे एक बडा़ हादसा फिर हुआ ७ सितम्बर २०११ को हाईकोर्ट के गेट नं पाँच पर काली आधी ने लोगो का घर उजाड़ दिया जिसमे १२ लोगो की जान गयी तथा ९० से ज्यादा लोग घायल हुऐ। इससे यह स्पष्ट हैं कि कमी हमारे सिस्टम में है। लेकिन सवाल बहुत से है पर जबाव कौन देगा।

परेशानी की बात तब होती है जब हमारे वरिष्ट नेता बड़ी मिटिग करते है औऱ ग्लोबल की लिस्ट में देश का नाम होता है। पर सबसे ज्यादा हमलोग ही क्यो रोते है क्या कभी हमारा सिस्टम अमेरिका के बराबर नहीं हो सकता अगर नहीं तो किस बात की दोस्ती करते है। क्या ऐसा है जो कि अमेरिका की तरफ आतंकी देखते भी नहीं औऱ हमारे देश से जाते भी नहीं लेकिन एक बात तो ये भी है कि आतंकीयो को पता है कि अमेरिका घर मे घुस कर मारेगा, इण्डिया में जाओ ब्लास्ट करो अगर पकडे़ गये तो स्वागत होगा ।अगर ये बात कड़वी लग रही है तो दे दो फांसी जिनको फांसी की सजा सुना दी गयी है। लेकिन कानून ने तो सुनाकर अपना पलडा भारी कर लिया हैं।परन्तु वोटों की राजनीति करने वाले कैसे इस देश की पंचलाईन को भुला दे आतिथि देवो भवाः, चलो इसका फर्क देश की उस अवाम पर पड़ता हैं., जिसका परिवार टूट जाता है। लेकिन सरकार भी इसपर मलहम का काम करती है घायल को या उनके परिजन को कुछ ना कुछ दे देती है। यह सब करने में सक्षम है परन्तु आतंक को नेस्तनाबुत करने में काहिल है। जिससे देश मे कुछ दिनो के अन्तराल पर इन मेहमानों की मेहमानवाजी करनी पड़ती हैं। लेकिन हमारे देश के अन्दर किसी दुखद घटना के बाद शुरु होती है।

राजनीतिक जंग जिसमें वोट बैक को अपने पाले मे करना सबसे बड़ी चुनौती होती हैं। और फिर होती है मिटिग जारी होता है आदेश फिर सब जगह रेंडअर्लट कर दिया जाता हैं। जब हमारे देश के नेता विदेश यात्रा पर जाते है तो पूरा संर्कुलर जारी होता हैं। पर जब कोई अनहोनी घटना घटती है तो अरसा गुजर जाता हैं। फिर जाँच के नाम पर उससे पहले का जबाव अभी बोलना जल्दवाजी होगी। लेकिन उस जगह संसद का विपछ दल पूरा रोल निभाता है। वह तुरन्त मिडिया को बुलायेगा और अपने विचार साथ में कानून व्यवस्था तथा जांच ऐंजसी को लपेट कर मियां मिट्टू बनेगे। लेकिन पता नहीं बड़ी अफसोस की बात हैं जब वह देश की शीर्श कुर्सी पर होते है तो फिर मौन व्रत आ जाता है। जैसे इस समय आम आदमी की सरकार कर रही हैं। लोग कहते है संगत का असर पडता है हमे नही लगता, अगर पड़ता होता तो देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बराक हुसैन ओबामा से कितने करीब है। उनके देश मे आने की खबर से संसद को दुल्हन की तरह सजाया गया था। इससे लगता हैं। कि प्रधानमंत्री के और देश के अजीज मित्र हैं। देश को ओबामा से सबक लेनी चाहिऐ, औऱ नेस्तनाबुत कर देना चाहिऐ इन ठलुओं को जो देश की आवोहवा को बर्वाद कर रहे हैं। अच्छा तब होगा, जैसे अमेरिका ने ओसामा को खत्म किया औऱ भारत आतंक खत्म कर दे। देश हित राष्ट हित सबसे बड़ा पुण्य हैं। हर भारतीय चाहता हैं,अब राष्ट हित करना क्योकि राष्ट की एकता के बारे में सरकार भलिभाँति जानती हैं। इसलिए प्रण करो, संकल्प लो देश को बचाना हैं।

दीपक पाण्डेय

इण्डिया हल्ला बोल

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