2014 के आम चुनाव से ऐन पहले राहुल गांधी ने आखिरकार हिम्मत दिखाई और कांग्रेस के उपाध्यक्ष की कुर्सी संभाल कर बड़ी जिम्मेदारी निभाने की तरफ कदम बढ़ाया। राहुल से कांग्रेसियों को उम्मीदें भी हैं और राहुल ने भी बड़ी जिम्मेदारी संभालने के बाद युवाओं के सहारे 2014 में यूपीए की हैट्रिक कराने का दम भी भरा। हालांकि कांग्रेस की तरफ से पीएम पद के लिए प्रोजेक्ट न होते हुए भी राहुल गांधी ही सरकार बनने की स्थिति में कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
कांग्रेसी तो काफी पहले ही चाहते थे कि राहुल पीएम बनें या सरकार में अहम जिम्मेदारी संभालें लेकिन राहुल हर बार कदम पीछे खींचते रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद कई बार राहुल से सरकार में शामिल होने का आग्रह करते रहे हैं लेकिन राहुल ने कभी हामी ही नहीं भरी या कहें कि हिम्मत नहीं दिखाई।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अन्य राजनीतिज्ञों की अपेक्षा युवा और चर्चित चेहरा हैं।निश्चित ही कांग्रेसियों के साथ ही देश के युवाओं को राहुल गांधी से बड़ी उम्मीदें भी होंगी लेकिन सवाल ये उठता है कि विपक्ष के राहुल को अपरिपक्व कहने पर उन्हें जवाब देते हुए खुद को परिपक्व कहने वाले राहुल गांधी आखिर क्यों हर बार सरकार में शामिल होने से बचते रहे..?
क्या राहुल गांधी को खुद पर भरोसा नहीं था..? या फिर राहुल एक ऐसी सरकार में शामिल नहीं होना चाहते थे जो पहले से ही भ्रष्टाचार, घोटालों और आर्थिक मोर्चे पर अपने फैसलों को लेकर सवालों के घेरे में है..?
जाहिर है राहुल एक ऐसी सरकार का हिस्सा रहकर 2014 में आम जनता के बीच नहीं जाना चाहते थे जिसका जवाब उन्हें जनता को देना भारी पड़ जाता..! ऐसे में राहुल ने जानबूझकर कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी संभालने के लिए 2014 के आम चुनाव से पहले का वक्त चुना और ये संकेत भी दिया कि वे युवाओं के सहारे युवा भारत की तकदीर लिखेंगे। लेकिन यहां पर ये सवाल जेहन में आता है कि जब राहुल के पास संगठन के अलावा कोई दूसरा अनुभव नहीं है तो 2014 में यूपीए की सरकार बनने की स्थिति आने पर वे कैसे देश को चला पाएंगे..?
राहुल के चाहने वाले शायद यहां पर शायद ये तर्क देंगे कि कोई भी व्यक्ति पेट से कुछ सीखकर नहीं आता और कहीं न कहीं से शुरुआत जरूर करता है और राहुल बहुत ही काबिल राजनेता हैं लेकिन इसका जवाब मैं ये देना चाहूंगा कि- देश को चलाना न तो एनएसयूआई के चुनाव कराने जैसा काम है और न ही खाली वक्त में किसी राज्य के किसी अति पिछड़े गांव में दलित के घर जाकर भोजन करने का काम..! या प्लास्टिक के तसले(बर्तन) में मिट्टी ढ़ो कर जमीन से जुड़े होने का एहसास कराने का काम..!
यहां सवाल राहुल की काबलियत का नहीं है बल्कि सवाल ये है कि 34 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश करने वाले राहुल गांधी 8 साल के अपने राजनीति जीवन में (जिसमें भी वे कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे) क्या इतने परिपक्व हो गए हैं कि सरकार बनने की स्थिति में वे 2014 में देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाल सकें..?
हां राहुल के पास एकमात्र और अनोखी काबलियत ये जरूर है कि उनका जन्म गांधी परिवार में हुआ और राजनीति उन्हें विरासत में मिली और गांधी परिवार के दम पर ही उनका राजनीति अस्तित्व कायम भी है।क्या सिर्फ उनकी इस एकमात्र काबिलियत को ये पैमाना बनाया जा सकता है कि सिर्फ 8 साल के राजनीतिक अनुभव वाले राहुल पीएम की कुर्सी के लिए योग्य हैं..?
हालांकि 8 साल के राजनीतिक जीवन का अनुभव राहुल के हिस्से में सिर्फ एक ये उपलब्धि दर्शाता है कि 2009 के आम चुनाव में राहुल ने 2004 की अपेक्षा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति को सुधारा और कांग्रेस की सीटों की संख्या 9 से बढ़ाकर 21 करने में सफलता हासिल की जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी का जादू नहीं चला और तीनों ही राज्यों में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी।
बहरहाल राहुल गांधी बड़ी जिम्मेदारी संभलकर कांग्रेस उपाध्यक्ष के साथ ही कांग्रेस में नंबर दो हो गए हैं और अघोषित रूप से 2014 में कांग्रेस के घोषित पीएम उम्मीदवार हैं लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि फैसला करने वाली देश की जनता क्या राहुल गांधी पर भरोसा करेगी..?
पत्रकार