बच्चों को साक्षर और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये छोड़ दी आराम की ज़िंदगी 

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दिनेश ने दक्षिण भारत के एक प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट से एम.ए (M.A) किया और दिल्ली से मास कम्यूनिकेशन  (Mass Communication) करने के लिए स्कॉलरशिप भी मिली।

इसी समय साल 1999 में उन्होंने एक एनजीओ ‘जीवन ज्योति समिती’ को भी रजिस्टर करवाया और महिलाओं और बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। इसके जरिये वो स्वास्थ्य, शिक्षा और वोकेश्नल ट्रेनिंग देने का काम जोरों से करने लगे। इसके लिए उन्होने दिल्ली और उसके आस पास के स्लम एरिया के बच्चों व महिलाओं को चुना और बड़ी मेहनत के साथ वो इनके स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देने लगे।

वहीं दूसरी ओर अपने जीवनयापन के लिए उन्होंने एक अखबार में बतौर पत्रकार के रूप में भी काम करना भी शुरू किया लेकिन उनका मन हमेशा समाजिक कार्यों  (Social Work) में ही लगता था और वे केवल उसी क्षेत्र में काम करना चाहते थे और गरीबों की मदद करके देश को आगे बढ़ाना चाहते थे।

आज उनके एनजीओ से बहुत से स्वयंसेवक जुड़ चुके थे ,जो दिल्ली के कीर्ति नगर औऱ उसके आस पास के स्लम इलाके में जाकर काम करने लगे। पहले नौकरी और उसके बाद विवाह के पश्चात पारिवारिक जिम्मेदारियों कारण दिनेश को जल्द ही गुजरात के अहमदाबाद को अपना कार्यक्षेत्र बनाना पड़ा ,लेकिन समाज के लिए काम करने के उनके इस जुनून में जरा भी कमी नहीं आई और साल 2012 में उन्होंने वहां पर एक एनजीओ ‘दृष्टि फाउंडेशन ट्रस्ट ’ ( Drishti Foundation Trust ) की शुरूआत की और तब से लेकर आज तक यह एनजीओ लगातार लोगों के बीच जाकर जमीनी स्तर पर काम कर रहा है औऱ जरूरतमंदों की मदद में लगा है।

दृष्टि फाउंडेशन से जुडे वॉलेंटियर्स की संख्या 10 हजार से ज्यादा है और यह भारत के 7 राज्यों में स्वास्थ्य, शिक्षा, ह्यूमन ट्रैफिकिंग कंट्रोल (Health, Education & human trafficking control) जैसे मुद्दों पर काम कर रहा है।

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