इस गांव में सिर्फ महिलाएं और बच्चे हैं:
नगर वधुओं का एक ऐसा गांव, जहां बसती हैं सिर्फ महिलाएं और उनके मासूम बच्चे। ऐसे बच्चे जो अपने बाप के नाम से नहीं बल्कि अपनी मां के नाम से जाने जाते हैं, स्कूल में भी इनके नाम के आगे मां का नाम ही लिखा हुआ है। यह गांव है राजस्थान के बाड़मेर जिले का सांवरड़ा गांव। इस गांव में साटिया जाति के करीब 70 परिवार निवास करते हैं। गांव में 132 नगर वधुएं और लगभग 45 बच्चे हैं जो गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। गांव की महिलाएं अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए शारीरिक संबंध बनाती है।
नगर वधुओं का एक ऐसा गांव, जहां बसती हैं सिर्फ महिलाएं और उनके मासूम बच्चे। ऐसे बच्चे जो अपने बाप के नाम से नहीं बल्कि अपनी मां के नाम से जाने जाते हैं, स्कूल में भी इनके नाम के आगे मां का नाम ही लिखा हुआ है। यह गांव है राजस्थान के बाड़मेर जिले का सांवरड़ा गांव। इस गांव में साटिया जाति के करीब 70 परिवार निवास करते हैं। गांव में 132 नगर वधुएं और लगभग 45 बच्चे हैं जो गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। गांव की महिलाएं अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए शारीरिक संबंध बनाती है।
कैसे शुरू हुई ये परंपरा:
यह परंपरा 2500 साल पहले की है। जब भारत पर मौर्य वंश का राज था। तब युवतियां शादी से पूर्व ही शारीरिक संबंध बनाती थी। वे एक से अधिक लड़कों से इस तरह के संबंध रखती थी। ऐसा करना उनकी परंपरा में था। पुरुष इसके एवज में खूब धन-दौलत देते थे। ऐसा कहा जा सकता है कि युवतियों से देह व्यापार कराया जाता था। नगर के लोगों के द्वारा प्राप्त धन से इन युवतियों का कोषालय हमेशा भरा रहता था। इनकी इस कमाई का कुछ भाग राजकोष में कर के रूप में जमा कराया जाता था जिसका उपयोग राजा द्वारा अपने राज्य की भलाई में किया जाता था।