पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह को गुरुवार को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया। जहां से उन्हें छह दिनों की रिमांड पर भेज दिया गया। कयास लगाए जा रहे हैं कि छह दिनों तक चलने वाली सीबीआई की पूछताछ में कई बड़े राज खुल सकते हैं। इससे पहले कोर्ट के अंदर जाते समय यादव सिंह ने अपना मुंह छिपाकर रखा था।
सीबीआई टीम यादव सिंह को गुरुवार को दोपहर 3 बजे के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच गाजियाबाद स्थित सीबीआई कोर्ट लेकर पहुंची।सीबीआई के वकीलों ने न्यायाधीश से निलंबित चीफ इंजीनियर को 14 दिन की रिमांड पर देने की अपील की।रिमांड अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यादव सिंह को 6 दिन की रिमांड पर भेजने का आदेश दिया।
गाजियाबाद पुलिस सुबह से ही कोर्ट के बाहर मुस्तैद रही।एसएसपी धर्मेंद्र सिंह, एसपी सिटी सलमान ताज पाटिल सहित अन्य अधिकारी सीबीआई कोर्ट के बाहर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते रहे।सीबीआई टीम टवेरा गाड़ी में यादव सिंह को लेकर कोर्ट पहुंची।मौके पर मीडिया को देख यादव सिंह ने अपना चेहरा तौलिए में छुपा लिया।
बता दें कि सीबीआई को यादव सिंह के पास करोड़ों रुपए की संपत्ति होने के मामले में अहम सबूत मिले हैं। इससे पहले 16 दिसंबर 2015 को सीबीआई ने जूनियर इंजीनियर रामेंद्र सिंह को गिरफ्तार किया था। इनपर आरोप है कि रियल स्टेट के प्रोजेक्ट को पास करने के लिए इन्होंने पांच पर्सेंट कमीशन लिया। इसलिए इन्हें ‘मिस्टर 5%’ भी कहा जाता है। वहीं, यादव सिंह की गिरफ्तारी के बाद से उन्होंने जो भी टेंडर पास किए उनकी जांच फिर से शुरू हो गई है।
2015 में नोएडा अथॉरिटी समेत तीन अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर रहे यादव सिंह के घर पर इनकम टैक्स का छापा पड़ा था।उनकी गाड़ी से 10 करोड़ रुपए नकद और घर से 2 किलो सोना मिला था।इसके अलावा 100 करोड़ रुपए कीमत के हीरे के गहने जब्त किए गए।समाजसेवी नूतन ठाकुर इस मामले में कथित तौर पर यादव सिंह को सीबीसीआईडी द्वारा मिली क्लीन चिट को लेकर हाईकोर्ट चली गई।
16 जुलाई 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यादव सिंह और उसके करीबियों के खिलाफ सीबीआई जांच करने के आदेश दिए।इसके साथ ही प्राधिकरण द्वारा 2002 से 2014 तक जारी किए सभी ठेकों की भी जांच के आदेश दिए।हाईकोर्ट के आदेश के बाद 4 अगस्त 2015 को सीबीआई ने इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की।एक एफआईआर में सिर्फ यादव सिंह को नामजद किया गया है।
दूसरी में यादव सिंह के साथ उनकी पत्नी कुसुमलता, बेटे सनी यादव सिह, बेटी गरिमा भूषण और बिजनेस पार्टनर राजेंद्र मनोचा को भी नामजद किया गया है।यादव सिह के खिलाफ 27 नवंबर 2014 को आयकर विभाग की टीम ने छापेमारी की थी। उस दौरान मामला सुर्खियों में आने और विपक्षी दलों द्बारा मुद्दा बनाए जाने के बाद इस मामले की जांच के लिए राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज अमरनाथ वर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय एसआईटी का गठन किया गया।
एसआईटी के मामले की जांच कर छह महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी। 1० अगस्त को इसका छह महीने का कार्यकाल पूरा हो रहा है। हालांकि बाद में एसआईटी का कार्यकाल आगे बढ़ता रहा।प्रदेश के कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में यादव सिह की हिस्सेदारी बताई जाती है। उनके कई मॉल भी निर्माणाधीन हैं।
यादव सिंह पर आरोप लगा था कि उन्होंने प्राधिकरण में तैनाती का फायदा उठाते हुए अपनी पत्नी के नाम रजिस्टर्ड फर्म को सरकारी दर पर बड़े-बड़े व्यावसायिक प्लॉट अलॉट करा देते थे।इसके बाद इन्हीं प्लॉट को वह बिल्डरों को काफी ऊंचे दामों में बेच देते थे।आयकर विभाग ने मैकॉन इंफ्राटेक और मीनू क्रिएशंस नाम की फर्मों में छापेमारी की थी।इस दौरान जमीनों की खरीद-फरोख्त से जुड़े कई महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किए।
यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता और उनके पार्टनर राजेंद्र मनोचा, नम्रता मनोचा और अनिल पेशावरी द्वारा 40 कंपनियां बनाकर हेराफेरी का मामला सामने आया था।बोगस शेयर होल्डिंग के बूते सिर्फ नाम के लिए करीब 40 कंपनियां बनाकर नोएडा विकास प्राधिकरण से प्लॉट आवंटित करवाए गए।इसके बाद प्लॉट कंपनी समेत बेच दिए। इससे हुई आय को दस्तावेजों में न दिखा कर बड़े पैमाने पर आयकर चोरी की गई।
2009 से 2011 तक उद्योग मार्ग के लिए 954 करोड़ के ठेके दिए। मार्च 2012 में दर्ज हुआ मामला, फिर सस्पेंड हुए। 2013 में अखिलेश सरकार ने क्लीन चिट दे दी। 27 नवंबर 2014 को आयरकर विभाग के छापा मारा। फरवरी 2015 में प्राधिकरण ने सस्पेंड किया। 16 जुलाई 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। 4 अगस्त 2015 को सीबीआई ने केस दर्ज किया।16 दिसंबर 2015 के सीबीआई ने पूर्व सहायक परियोजना अभियंता रामेन्द्र सिंह को गिरफ्तार किया।