यूपी में आज से मंत्रियों और अफसरों की गाड़ियों पर नहीं लगेंगी लाल और नीली बत्तियां

यूपी में 21 अप्रैल  से लाल, नीली बत्तियों पर बेन लग जाएगा. यह प्रतिबंध फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, आर्मी और  पुलिस के वाहनों पर लागू नहीं होगा. वीआईपी सुरक्षा में लगी गैर जरूरी फोर्स हटा दी जाएगी. राज्य सरकार ने यह फैसला लिया है. केंद्र सरकार ने एक मई से देश भर में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए मंत्रियों, जजों, अफसरों के वाहनों पर लाल बत्ती के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला लिया है.

यूपी सरकार ने इस फैसले के लागू होने से दस दिन पहले ही लाल बत्ती पर रोक लगा दी है.गौरतलब है कि यूपी में मंत्री तो दूर की बात है छुटमैया नेता और यहां तक कि मंत्रियों के घरों में खाना बनाने वाले बावर्ची भी लाल बत्ती के वाहनों में घूमने का शौक पूरा करते रहे हैं. यही हाल सुरक्षा को लेकर रहा है. वीआईपी सुरक्षा में जरूरत से काफी अधिक बल का उपयोग होता रहा है.

स्टेटस की निशानी माने जाने वाली इस परंपरा पर योगी सरकार ने तय समय सीमा से पहले ही रोक लगा दी है. शुक्रवार से यूपी में कोई भी मंत्री, अफसर वाहनों पर लाल, नीली बत्ती का उपयोग नहीं कर सकेगा.उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सभी मंत्री एक मई से लालबत्ती का इस्तेमाल नहीं करेंगे. अधिकारियों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और जजों को अपनी कारों पर लालबत्ती इस्तेमाल करने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है.

केवल आपातकालीन वाहनों को नीली बत्ती इस्तेमाल की अनुमति होगी. इसका एक सांकेतिक महत्व भी है क्योंकि एक मई को मजदूर दिवस है. इस दिन मोदी सरकार यह संदेश देना चाहती है कि उसके मंत्री वीआईपी कल्चर से दूर रहेंगे. पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ लालबत्ती का इस्तेमाल पहले ही छोड़ चुके हैं.

आमतौर पर वीआईपी रूट के दौरान पुलिस बैरिकेट्स लगा देती है और कई जगह का ट्रैफिक रोक देती है, जिसकी वजह से आम लोगों को काफी दिक्कत होती है. इसी महीने की शुरुआत में एक वीडियो भी वाय़रल हुआ था, जिसमें एक एम्बुलेंस को पुलिस ने रोक दिया था, जिसमें घायल बच्चे को ले जाया जा रहा था.काफी वक्त से सड़क परिवहन मंत्रालय में इस मुद्दे पर काम चल रहा था.

इससे पहले पीएमओ ने इस पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई थी. यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय में लगभग डेढ़ साल से लंबित था. इस दौरान पीएमओ ने पूरे मामले पर कैबिनेट सेक्रेटरी सहित कई बड़े अधिकारियों से चर्चा की थी. इसमें विकल्प दिया गया था कि संवैधानिक पदों पर बैठे पांच लोगों को ही इसके इस्तेमाल का अधिकार हो. इन पांच में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और लोकसभा स्पीकर शामिल हों.

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