इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा संविधान से ऊपर कोई पर्सनल लॉ नहीं है। तीन तलाक कॉन्स्टिट्यूशन का वॉयलेशन है। संविधान के दायरे में ही पर्सनल लॉ लागू हो सकता है। पर्सनल लॉ के नाम पर महिलाओं के बेसिक ह्यूमन राइट्स का वॉयलेशन नहीं हो सकता। बता दें कि हाईकोर्ट ने वाराणसी में तीन तलाक के मामले के बाद दर्ज दहेज हैरेसमेंट केस की सुनवाई करते ये व्यवस्था दी.
हाईकोर्ट ने कहा पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं समेत सभी नागरिकों को मिले आर्टिकल 14, 15 और आर्टिकल 21 के मूल अधिकारों का वॉयलेशन नहीं किया जा सकता।जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता, उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता। कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो।
कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है।वहीं, फतवे पर कोर्ट ने कहा ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के खिलाफ हो।बता दें कि 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक मुद्दे की सुनवाई एक 5 जजों की बेंच को सौंपी थी। इस पर 11 मई को सुनवाई होगी।
ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ पर्सनल बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना वलीम रहमानी ने अप्रैल में कहा था बोर्ड का मानना है कि तीन तलाक औरत को मुश्किलों से बचाने के लिए है। हम दूसरे मजहब में दखल नहीं करते हैं, तो दूसरा मजहब भी हमारे मामले में दखल ना दे। तलाक का मामला शरीयत के हिसाब से ही रहेगा। जब कोर्ट का फैसला आएगा, तब हम उसे देखेंगे।