हड़ताल का असर बैंकिंग, बिजली आपूर्ति, तेल और गैस, परिवहन, भंडारण और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं पर देखा गया। कारखानों में बुधवार को अधिकतर लोग काम पर नहीं आए। एसोचैम ने देशव्यापी हड़ताल से देश की अर्थव्यवस्था को करीब 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान लगाया है। एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने बताया कि आवश्यक सेवाओं के बाधित होने का सीधा असर वित्तीय प्रभाव छोड़ेगा।
हड़ताल से देश के अधिकांश भागों में बैंक व राज्य परिवहन सेवाएं ठप रहीं, जबकि कोयले का उत्पादन आधा हो गया। पश्चिम बंगाल में झड़पों ने हड़ताल को हिंसक रूप दे दिया। यूनियनों ने हड़ताल को अप्रत्याशित रूप से कामयाब बताया है। जबकि आर्थिक राजधानी मुंबई में हड़ताल की नाकामी देख सरकार ने इसे बेअसर कहने में देर नहीं की।
कांग्रेस ने सरकार पर श्रमिक आंदोलन की उपेक्षा का आरोप लगाया। पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ‘जिस तरह अंग्रेज लाखों मजदूरों की कीमत पर ईस्ट इंडिया कंपनी को फायदा पहुंचाना चाहते थे, उसी तरह मोदी सरकार 5-6 कुटिल उद्योगपति मित्रों को लाभ पहुंचाना चाहती है।’सीआइआइ अध्यक्ष सुमित मजूमदार के अनुसार, हड़ताल के कारण निवेश के उपयुक्त देश के तौर पर भारत की छवि प्रभावित हुई है।
हड़ताल का सबसे ज्यादा असर पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल, पुडुचेरी और ओडिशा में दिखाई दिया। जबकि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, गुजरात, गोवा, तमिलनाडु में हड़ताल का मिला-जुला असर रहा। राजस्थान, असम, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में हड़ताल से सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ।
बैंकिंग सेवाएं सबसे अधिक प्रभावित हुईं। सार्वजनिक क्षेत्र के 23, निजी क्षेत्र के 12, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के 52 तथा सहकारी क्षेत्र के 13 हजार बैंकों में काम नहीं हुआ। लेकिन एसबीआइ, इंडियन ओवरसीज बैंक, आइसीआइसीआइ, एचडीएफसी और एक्सिस बैंक के बाहर रहने से कुछ राहत मिली। आल इंडिया बैंक एंप्लाईज एसोसिएशन के महासचिव सीएच वेंकटचलम के अनुसार तकरीबन पांच लाख बैंक कर्मी हड़ताल में शामिल हुए।
कोल इंडिया के चार लाख कर्मचारियों के हड़ताल पर रहने के कारण इसकी इकाइयों में कोयले का दैनिक उत्पादन 170 लाख टन से घटकर लगभग आधा रह गया। कोयला व ऊर्जा मंत्री पीयूष के दावे के अनुसार, बिजली उत्पादन पर प्राय: कोई असर नहीं पड़ा। पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान ने भी कहा कि कुल मिलाकर हड़ताल बहुत असरदार नहीं रही।
यूनियनों ने संयुक्त वक्तव्य में दावा किया है कि हड़ताल अप्रत्याशित रूप से सफल रही है। आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के सचिव डीएल सचदेव ने कहा कि अकेले गुडग़ांव में पांच लाख फैक्ट्री कर्मचारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया। हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल, उप्र तथा अन्य कई राज्यों में राज्य परिवहन की बसें नहीं चलीं। कई रक्षा उत्पादन इकाइयों में कामकाज ठप रहा। डाक सेवाओं तथा बीएसएनएल की टेलीफोन सेवाएं भी प्रभावित हुईं।
फैक्ट्रीज एक्ट जैसे श्रम कानूनों में संशोधन के एकपक्षीय प्रयास को बंद करना, रेलवे व रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति को रद्द करना, कर्मचारियों को 15 हजार रुपये का न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करना, देश भर में न्यूनतम वेतन की समान दरें लागू करना, बोनस व भविष्य निधि पर सीमाएं समाप्त करना, सामाजिक सुरक्षा, श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन, पेंशन बढ़ाना, ठेका मजदूरी समाप्त करना, महंगाई पर अंकुश लगाना, 45 दिनों में ट्रेड यूनियनों का अनिवार्य पंजीकरण तथा रोजगार के अवसर बढ़ाना शामिल हैं। सरकार ने इनमें से नौ मांगों पर विचार के वादे के साथ यूनियनों से हड़ताल न करने की अपील की थी।