आरएसएस के स्वयंसेवकों ने विजयदशमी के दिन अपने स्थापना दिवस के मौके पर अपने 90 साल पुरानी यूनिफॉर्म खाकी हाफ पैंट को त्यागकर भूरे रंग की फुल पैंट को अपना लिया। आरएसएस के स्वयंसेवकों ने अपने गणवेश में 90 साल से शामिल खाकी निकर को छोड़कर ब्राउन रंग की पतलून पहन लिया। इस तरह से इस संगठन में एक पीढ़ीगत बदलाव आ गया, जिसे भाजपा का वैचारिक मार्गदर्शक माना जाता है। दशहरा पर संघ के स्थापना दिवस के मौके पर संघ की वेशभूषा में यह बदलाव आया।
विजयादशमी पर्व के मौके पर आयेाजित समारोह में खाकी निकर की बजाय भूरे रंग के फुल पैंट में पथ संचलन (मार्च) किया। नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में चल रहे इस समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी पहुंचे1संघ के स्थापना दिवस पर मंगलवार को हुए समारोह में संघ के कार्यकर्ताओं ने खाकी निक्करों की जगह गहरे भूरे रंग की चुस्त पतलूनें पहन रखी थी। बीते 90 साल से चली आ रही खाकी निक्करों की जगह तो पतलूनों ने ली है लेकिन पारंपरिक बांस का लट्ठ अभी भी उनके गणवेश का हिस्सा है।
साल 1925 में इस हिंदुत्व संगठन की स्थापना के बाद से ही इसके पूरे गणवेश में कमीजों से लेकर जूतों तक कई बदलाव आए हैं लेकिन अंग्रेजों के जमाने के सिपाहियों की वर्दी की तर्ज पर संघ की खाकी निक्करें लगातार गणपेश का हिस्सा बनी रहीं। कार्यकर्ताओं की ओर से पहने जाने वाले मोजों का रंग भी खाकी से बदलकर गहरा भूरा कर दिया गया है। इसके अलावा अब से कार्यकर्ता गहरे भूरे रंग की पतलून के साथ सफेद रंग की कमीज और काली टोपी पहनेंगे। लट्ठ भी गणवेश का हिस्सा होगा।
उत्तरी और पूर्वी राज्यों में रहने वाले कार्यकर्ता भीषण सर्दी में गहरे भूरे रंग के स्वेटर भी पहनेंगे। ऐसे एक लाख स्वेटरों तैयार करने के लिए ऑर्डर दे दिया गया है। संघ के संचार विभाग के प्रमुख मनमोहन वैद्य ने बताया कि विभिन्न मुद्दों पर संघ के साथ मिलकर काम करने के लिए समाज पहले से ज्यादा तैयार हुआ है। ऐसे में काम के दौरान कार्यकर्ताओं की सुविधा और आराम को देखते हुए गणवेश में बदलाव किया गया है।
यह बदलाव बदलते वक्त के साथ कदमताल करने के लिए किया गया है।उन्होंने बताया कि ऐसी आठ लाख पतलूनें देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित संघ कार्यालयों में भेजी गई हैं। इनमें दो लाख सिली हुई तैयार पतलूनें हैं जबकि दो लाख पतलूनों के कपड़े हैं।गणवेश में बदलाव पर पहली बार साल 2009 में विचार किया गया था। साल 2015 में इस पर नए सिरे से विचार हुआ।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने गणवेश में बदलाव का समर्थन किया था। वैद्य ने बताया कि 2009 में गणवेश में बदलाव का विचार किया गया था लेकिन तब इस पर आगे काम नहीं हो सका। विचार-विमर्श के बाद 2015 में इस प्रस्ताव को फिर से आगे बढ़ाया गया और निकर की जगह ट्राउजर को वेशभूषा में शामिल करने की आम-सहमति बन गयी।