इस साल तो समूचे उत्तर भारत में 45 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहे पारे से अब तक गर्मी 2300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन आने वाले सालों में केवल उत्तर भारत ही नहीं बल्कि अब नए क्षेत्र जैसे दक्षिण भारत समेत पूर्वी और पश्चिमी तटीय इलाके भी भीषण गर्मी से तपने वाले हैं।गर्मी ना सिर्फ अत्यधिक बढ़ेगी बल्कि ग्रीष्मकाल भी अधिक लंबा होगा। देश में गर्मी की मार के साथ मौतों का सिलसिला भी और बढ़ेगा। आइआइटी-बांबे के शोधकर्ताओं ने पिछले 40 साल (1969-2009) के देश भर के 395 मौसम विभाग के स्टेशनों से तापमान के आंकड़े जुटाकर यह अध्ययन किया है। रीजनल इनवायरमेंट चेंज जरनल में प्रकाशित शोध के अनुसार भविष्य में दक्षिण भारत में तपती-झुलसती गर्मी के नजारे आम होंगे।
गृह मंत्रालय से जुटाए गए आंकड़े भी बताते हैं कि तीव्रता, अवधि और आवृत्ति के आधार पर गर्म हवा भी निम्न, मध्यम और तीव्र होती है। उसकी इन तीन श्रेणियों की दर ही लंबे समय में पर्यावरण परिवर्तन का संकेत देती हैं। आकलन की इस प्रक्रिया को रीप्रेजन्टेटिव कंसन्ट्रेशन ट्रैजिक्टरीज पाथवेज (आरसीपी) कहते हैं। इसमें चार ग्रीन हाउस गैसों के तीव्र सांद्रता वाले मार्ग ही पृथ्वी पर भावी पर्यावरण का निर्धारण करते हैं। शोध में आइआइटी-बांबे ने आरसीपी 26 के प्रोजेक्शन के आधार पर विश्व का दो डिग्री तापमान बढ़ने का दावा किया।
फिलहाल तो अत्यधिक गर्मी होने के बावजूद तापमान उतना अधिक नहीं बढ़ रहा। लेकिन सन् 2070 के बाद ग्रीष्म लहर की तीव्रता और अवधि असहनीय हो जाएंगे। खासकर दक्षिण भारत का अधिकांश भाग और पूर्वी व पश्चिमी तट भी भीषणतम गर्मी से प्रभावित होंगे। देश के जो इलाके थोड़े बहुत भी गर्मी से बचे रह जाएंगे वह 2070 के बाद जानलेवा गर्मी का सामना करेंगे। भावी सालों में भीषण गर्मी मई-जून के बजाय अप्रैल माह से ही शुरू हो जाया करेगी।वैश्विक तापमान के बढ़ने के साथ ही भारत में बीसवीं सदी की शुरुआत के मुकाबले अब तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। सतह पर वायु तापमान 0.74 डिग्री अधिक पाया गया। भूमि की सतह का तापमान समुद्र की सतह के तापमान से कहीं अधिक बढ़ गया है।