दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि वह अदालत पर दबाव नहीं बना सकती और उप-राज्यपाल के साथ तालमेल की कमी से पैदा होने वाले मुद्दों पर उसकी बहसों की कोई सीमा होनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की एक पीठ ने कहा, ‘इसमें कोई सीमा होनी चाहिए। आप ऐसा बर्ताव नहीं कर सकते। क्या ये अदालत को अपनी बात बताने का तरीका है? क्या आप यह कर अदालत पर दबाव बनाना चाह रहे हैं कि आप बहस के लिए दो दिन का वक्त लेंगे?
पीठ ने दिल्ली सरकार के वकील से यह तब कहा जब उन्होंने कहा कि वह कथित डीडीसीए घोटाले पर ‘आप’ सरकार की ओर से गठित जांच आयोग को लेकर दायर की गई याचिकाओं में से एक पर बहस के लिए दो दिन का वक्त लेंगे।अदालत ने कहा, ‘दो दिन? हम आपको दो घंटे से ज्यादा नहीं देंगे। हमारे सामने सारी बहस की जा चुकी है। आप बस हमें ये बताएं कि क्या आपके पास कोई अतिरिक्त तर्क है। आप इस तरह अदालत पर दबाव नहीं बना सकते। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इस अदालत को मामले का निपटारा 31 जुलाई तक कर देना है।’ बहरहाल, दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि वह अदालत के सामने उन मुद्दों को नहीं दोहराएंगे जो पहले बोले जा चुके हैं ।
इस पर पीठ ने कहा, ‘आप अपने लिखित बिंदुओं में बताएं कि आप क्या दलील देना चाहते हैं। आप इसे हमेशा जारी नहीं रख सकते। कोई तो सीमा होनी चाहिए।’ मंगलवार की बहस के दौरान वकील ने जांच आयोग के गठन के बाबत इसकी रूपरेखा और दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र पर अपनी दलीलें पेश की। उन्होंने कहा कि मंत्रिपरिषद की ओर से पारित प्रस्ताव उप-राज्यपाल के लिए बाध्यकारी होता है। पीठ उप-राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच तालमेल की कमी से जुड़े 11 मामलों पर एक साथ सुनवाई कर रही है।