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कांग्रेस के चलते पार्टी की हालत बादल फटने जैसी हो गई : शिवसेना

कांग्रेस को उनकी ही सहयोगी पाटी की तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. शिवसेना ने 21 मई 2022 के अपने मुखपत्र ‘सामना’ में राहुल गांधी की पार्टी पर निशाना साधते हुए कई सख्त अल्फाजों को इस्तेमाल किया है.

अखबार में सुनील जाखड़ और हार्दिक पटेल के कांग्रेस छोड़ने पर टिप्पणी की है और साथ ही शिवसेना ने अपनी सहयोगी को इन इस्तीफे को लेकर चिंतन करने की सलाह दी है.शिवसेना ने सामना में अपने संपादकीय में लिखा कांग्रेस पार्टी की हालत बादल फटने जैसी हो गई है.

पैबंद भी कहां लगाएं? पंजाब में कांग्रेस के नेता सुनील जाखड़ और गुजरात से हार्दिक पटेल ने पार्टी छोड़ दी है. राजस्थान में कांग्रेस का चिंतन शिविर संपन्न हुआ.  उस चिंतन शिविर का समापन शुरू रहने के दौरान ही कांग्रेस में ऐसा रिसाव शुरू हुआ.

बीते कुछ समय से भगदड़ का मामला कांग्रेस के लिए कुछ नया नहीं रहा है, लेकिन सोनिया गांधी से राहुल गांधी तक सभी ने ही कांग्रेस को फिर से खड़ी करने के लिए आवाज लगाई. उसी दौरान नए सिरे से रिसाव का शुरू होना यह चिंताजनक है.

शिवसेना ने सामना में सवाल खड़े करते हुए लिखा पंजाब के सुनील जाखड़ और हार्दिक पटेल बाहर क्यों निकले? इस पर चिंतन करने का वक्त आ गया है. बलराम जाखड़ कांग्रेस पार्टी के एक समय के दिग्गज नेता, गांधी परिवार के बेहद वफादार थे.

बलराम लोकसभा के अध्यक्ष भी बने. सुनील जाखड़ उन्हीं बलराम जाखड़ के बेटे हैं. पंजाब कांग्रेस का उन्होंने कई सालों तक नेतृत्व किया, लेकिन नवजोत सिद्धू को व्यर्थ महत्व मिलने से जाखड़ हाशिए पर फेंक दिए गए. उन्हीं जाखड़ ने आखिरकार बीजेपी की राह पकड़ ली.

सामना के संपादकीय में आगे लिखा गया सुनील जाखड़ ने पार्टी छोड़ते समय कांग्रेस नेतृत्व से सवाल पूछा मैं पंजाब और देशहित ही बोल रहा था, लेकिन उस पर कांग्रेस ने मुझे नोटिस देकर क्या हासिल किया? ये उनका मुख्य सवाल है. कांग्रेस ने मेरी राष्ट्रवादी आवाज को दबाने की कोशिश की, ऐसा आरोप जाखड़ लगाते हैं.

सामना ने बाकी नेताओं के कांग्रेस छोड़ने पर भी टिप्पणी की, उन्होंने लिखा, ‘माधवराव सिंधिया, जितिन प्रसाद और बलराम जाखड़ इन तीनों नेताओं को कांग्रेस ने भरपूर दिया. उनके बच्चों का कल्याण करने में भी कांग्रेस ने कभी हाथ पीछे नहीं खींचे.

ज्योतिरादित्य, जितिन प्रसाद व सुनील जाखड़ इन तीनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पिता से बड़ी निकली. उसकी तुलना में कांग्रेस पार्टी छोटी साबित हुई इसलिए उन तीनों ने कांग्रेस को त्याग दिया. संकट के समय तीनों की जरूरत होने के बावजूद तीनों ने कांग्रेस को छोड़ दिया.

इसे नेतृत्व की ही नाकामी कहना होगा. युवकों को कांग्रेस पार्टी में अपना भविष्य नजर नहीं आता होगा तो क्या होगा? गौरतलब है कि शिवसेना और कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र सरकार में एक दूसरे की सहयोगी है.

इन दोनों के अलावा एनसीपी भी महाराष्ट्र में साझा सरकार चला रही हैं. तीनों पार्टियां इस राज्य में एक ही गठबंधन का हिस्सा है जिसका नाम है महाराष्ट्र विकास आघाडी. सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना ने कांग्रेस पर निशाना साधा है.

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