आज से ठीक 4 साल पहले बिहार में जुलाई 2017 में महागठबंधन की सरकार गिरी थी और तेजस्वी यादव को नेता विरोधी दल का दर्जा मिला था. इसके बाद लालू प्रसाद चारा घोटाले के पुराने मामले को लेकर जेल चले गए, जहां लंबे वक्त तक उन्हें जमानत नहीं मिल पाई.
लालू की अनुपस्थिति में पार्टी पूरी तरीके से तेजस्वी के नेतृत्व में ही काम कर रही थी. तेजस्वी यादव की पकड़ लगातार पार्टी पर मजबूत होती गई और परिवार के बाकी पावर सेंटर धीरे-धीरे कमजोर होते चले गए. लालू प्रसाद के बाहर रहने पर ऐसा करना इतनी जल्दी संभव नहीं होता.
ये भूमिका इसलिए कि अब ये चर्चा चल रही है कि राष्ट्रीय जनता दल में तेजस्वी यादव को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. फिलहाल स्थापना काल से लेकर अब तक लालू प्रसाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
ऐसे में हो सकता है कि स्वास्थ्य कारणों से आरजेडी का संगठन लालू प्रसाद का बोझ हल्का करना चाह रहा हो लेकिन एक पार्टी में एक पावर सेंटर बनाने की बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.
लालू प्रसाद जब लंबे वक्त तक जेल में भी अध्यक्ष का पद संभाल सकते हैं तो फिर अब ऐसा क्या हो गया कि पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष पद की बात चल रही है. कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा फिर कुछ दिनों के बाद पूरी पार्टी उन्हीं को सौंप दी जाएगी.
कार्यकारी अध्यक्ष पद के कयास की शुरुआत तब हुई जब आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने दिल्ली में लालू प्रसाद से मुलाक़ात की. पिछले दिनों जगदानंद सिंह के इस्तीफे की खबर भी सामने आई थी. कहा ये गया था कि जगदानंद सिंह तेजप्रताप के बयान से नाराज हैं.
लेकिन मुलाकात के बाद अब तेजस्वी यादव को अध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की नई बात सामने आ रही है.खबर जैसे ही सामने आई बिहार की सियासत में बयानों का दौर शुरू हो गया. महागठबंधन के बाकी दलों ने स्वागत किया तो एनडीए ने हमला बोल दिया.
कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा ने कहा कि तेजस्वी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में बेहतर परिणाम आए, जाहिर है अगर वे अध्यक्ष बनते हैं तो ये खुशी की बात होगी. इधर, जेडीयू नेता अभिषेक झा ने कहा कि हर बार राष्ट्रीय जनता दल ने ये साबित किया है कि पार्टी कभी भी परिवार से बाहर नहीं निकल पाती है.
सियासत में लालू प्रसाद का जो करिश्माई नेतृत्व है, उस तरह का लीडर आसानी से किसी दल को हासिल नहीं होता. तमाम आरोपों के बावजूद, सालों से सत्ता से बाहर रहने पर भी उनकी पार्टी अब भी बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी है. ऐसे में आखिर आरजेडी किसी और नाम पर विचार क्यों कर रही है? इसका जवाब ये है कि पॉलिटिक्स में पॉवर सेंटर का बड़ा महत्व है.
एक पार्टी में कई पावर सेंटर होंगे तो इसका नुकसान पार्टी को अलग-अलग स्तरों पर हो सकता है. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी ये मुद्दा उठा था कि पोस्टर पर लालू प्रसाद की तस्वीर नहीं लगी. लालू प्रसाद के नाम के फायदे भी हैं और नुकसान भी, लगता है आरजेडी फायदों को समेटकर नुकसान से कन्नी काटकर निकलना चाहती है.