सुषमा स्वराज के यूएन जनरल असेंबली में दिए आतंकवाद के वयान पर बोला चीन

चीन ने कहा कि सुषमा की यूएन जनरल असेंबली में दी गई स्पीच घमंड से भरी थी लेकिन ये तो मानना पड़ेगा कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (65) ने 23 सितंबर को यूनाइटेड नेशंस की जनरल असेंबली (UNGA) में वे 22 मिनट की स्पीच दी और 10 मिनट आतंकवाद पर बात की। छह मिनट तक उन्होंने पाकिस्तान को जमकर लताड़ा। सुषमा ने कहा भारत-पाक एकसाथ आजाद हुए थे।

भारत की पहचान आज दुनिया में आईटी सुपरपावर के रूप में बनी। लेकिन पाक की पहचान दहशतगर्द मुल्क की बनी है। भारत ने आईआईटी, आईआईएम बनाए। लेकिन पाकिस्तान वालों ने लश्कर-ए-तैयबा बनाया, जैश-ए-मोहम्मद बनाया।न्यूज एजेंसी के मुताबिक चीन ने कहा कि यूएन में दी गई सुषमा की स्पीच पक्षपात से भरी थी।

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इंडियाज बाइगोटरी नो मैच फॉर इट्स एम्बीशन नाम से आर्टिकल लिखा है। इसके मुताबिक पाकिस्तान में आतंकवाद है। लेकिन क्या आतंकवाद को सपोर्ट करना पाक की नेशनल पॉलिसी है? पाक को आतंकवाद के एक्सपोर्ट से क्या हासिल होगा? पैसा या फिर सम्मान।

पाकिस्तान की इकोनॉमी में सुधार हुआ है। उसके विदेशों से रिश्ते भी बेहतर हो रहे हैं। लेकिन घमंड में भरा भारत, पाक को नीचा दिखाने की कोशिश करता है।ग्लोबल टाइम्स ने ये भी लिखा भारत को अपने पड़ोसियों से एक तरह का डर है। वो अमेरिका और यूरोप से ज्यादा नजदीकी दिखा रहा है। भारत को चाहिए कि वह चीन को दोस्त समझे और पाकिस्तान का सम्मान करे।

सुषमा की स्पीच की भारतीय मीडिया ने भी जमकर तारीफ की। चीन को इस तरह बताया गया कि वह जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अजहर को ब्लैकलिस्ट करने से रोक रहा है।सुषमा स्वराज ने कहा पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम ने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान को दोस्ती और शांति की विदेश नीति विरासत में दी थी। मैं उन्हें याद दिलाना चाहूंगी कि शांति और दोस्ती की नीति मोहम्मद अली जिन्ना ने विरासत में दी या नहीं, ये तो इतिहास बहुत अच्छी तरह जानता है।

लेकिन, ये एक सच्चाई है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शांति और दोस्ती की नीयत जरूर दिखाई थी। उन्होेंने सारी रुकावटों को पार करते हुए दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया, किंतु कहानी किसने बदरंग की? अब्बासी साहब इसका जवाब आपको देना है, मुझे नहीं। पर क्या उन्हें याद नहीं कि शिमला समझौते और लाहौर डिक्लेरेशन के अंतर्गत हम दोनों देशों ने ये निर्णय किया है कि हम आपसी मसलों को इकट्ठे बैठकर हल करेंगे, किसी तीसरे की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेंगे।

सच्चाई तो ये है कि पाकिस्तान के सियासतदानों को याद तो सबकुछ है, लेकिन अपनी सुविधा के कारण वो उसे भूल जाने का नाटक करते हैं।विदेश मंत्री ने कहा पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम ने कॉम्प्रेहेन्सिव डायलॉग की बात भी की। मैं याद दिला दूं कि 9 दिसंबर 2015 को हार्ट ऑफ एशिया के सम्मेलन के लिए जब मैं इस्लामाबाद गई थी, तो उनके नेता और उस समय के वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ की सरपरस्ती में नए सिरे से डायलॉग शुरू करने का फैसला हुआ था और उसे नया नाम भी दिया गया था।

नाम था-कॉम्प्रेहेन्सिव बाइलेटरल डायलॉग। बाइलेटरल शब्द सोच-समझकर डाला गया था ताकि कोई संदेह, कोई शक, कोई डाउट रह ही ना जाए और ये निश्चित हो जाए कि बातचीत दोनों देशों के बीच ही होनी है. किसी तीसरे की मदद लेकर नहीं। लेकिन, वो सिलसिला आगे क्यों नहीं बढ़ा? इसके लिए भी अब्बासी साहब जवाबदेह आप हैं, मैं नहीं।

सुषमा ने कहा आज इस मंच से मैं पाकिस्तान के सियासतदानों से सवाल पूछना चाहती हूं कि क्या कभी आपने इकट्ठे बैठकर ये सोचा है कि भारत और पाकिस्तान साथ-साथ आजाद हुए थे। आज भारत की पहचान दुनियाभर में IT के सुपरपावर के रूप में बनी है और पाकिस्तान की पहचान एक दहशतगर्द मुल्क, एक आतंकवादी देश के रूप में बनी है। इसकी क्या वजह है, ये कभी सोचा है आपने? एक ही वजह है कि भारत ने पाकिस्तान के द्वारा दी गई आतंकवाद की चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपने घरेलू विकास को कभी थमने नहीं दिया।

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