नेता शहाबुद्दीन की बिहार के सिवान में अपने दो भाइयों की नृशंस हत्या के मामले के गवाह की हत्या के मामले में मिली जमानत को रद्द किए जाने की मांग वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय के अगले हफ्ते सुनवाई करने के लिए आज सहमत हो जाने के बाद राजद नेता की मुश्किलें बढ सकती हैं।
उच्चतम न्यायालय ने सिवान के चंद्रकेश्वर प्रसाद की याचिका पर शहाबुद्दीन से जवाब देने को कहा। प्रसाद के तीन पुत्रों की दो अलग-अलग घटनाओं में हत्या कर दी गयी थी। हालांकि न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के जमानत आदेश पर रोक के अंतरिम अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। शहाबुद्दीन के खिलाफ 2014 में 58 आपराधिक मामले लंबित थे।
गठबंधन की बाध्यताओं को दरकिनार करते हुए नीतीश कुमार नीत सरकार प्रसाद की याचिका से भी एक कदम आगे बढ गयी और उसने राजद के बाहुबली नेता के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए जाने की मांग की। शहाबुद्दीन ने हाल ही में भागलपुर जेल से छूटने के बाद कहा था कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं।
न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने वकील प्रशांत भूषण और बिहार सरकार की दलीलें करीब एक घंटे तक सुनी और कहा कि वह शहाबुद्दीन का पक्ष भी सुनना चाहती है। पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के सात सितंबर 2016 के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने वाली याचिका तथा विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करने को कहा जिस पर अगले सोमवार यानी 26 सितंबर तक जवाब देना है।
प्रसाद उर्फ चंदा बाबू की ओर से पेश भूषण ने कहा कि शहाबुद्दीन कुख्यात अपराधी है और बिहार में, विशेषकर सिवान में उसका आतंक है। उन्होंने कहा, ‘2014 में एक अन्य मामले में बिहार सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार, शहाबुद्दीन के खिलाफ 58 आपराधिक मामले लंबित हैं और उनमें से आठ में सजा दोषसिद्धि हो चुकी है।
सुनवाई अदालत ने दो मामलों में उम्रकैद की सजा सुनायी है।’ चंदा बाबू के पुत्र राजीव रोशन की हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को हाल ही में उच्च न्यायालय से जमानत मिली है। राजीव सिवान में अपने दो भाइयों की नृशंस हत्या मामले में एकमात्र चश्मदीद गवाह था।राजद नेता को दोहरे हत्या मामले में दोषी ठहराया गया है और उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है जबकि रोशन हत्या मामले में सुनवाई अभी शुरू नहीं हुयी है।
भूषण ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर गौर किया कि रोशन हत्या मामले में सुनवाई शुरू नहीं हो सकी क्योंकि शहाबुद्दीन भागलपुर जेल में हैं और अब जमानत पर रिहा कर दिया गया। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय का सबसे अच्छा आदेश यह हो सकता था कि भागलपुर जेल से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए सुनवाई हो सकती है।
उन्होंने कहा कि शहाबुद्दीन को बिहार से बाहर किसी जेल में स्थानांतरित किया जाना चाहिए था। भूषण ने आरोप लगया कि शहाबुद्दीन का इतना प्रभाव है कि जेल के अधिकारी शहाबुद्दीन को अपने समर्थकों से मिलने की अनुमति दे देते थे। भूषण ने दावा किया कि एक छापे के दौरान, शहाबुद्दीन के सेल से 40 मोबाइल फोन बरामद किए गए थे और ऐसी खबरें थीं कि शहाबुद्दीन को अक्सर जेल से बाहर जाने दिया जाता है। इस वजह से एक बार एक जेल अधीक्षक को निलंबित किया गया था।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने भूषण से सवाल किया कि वह शहाबुद्दीन को मिली जमानत को रद्द करने की मांग कर रहे हैं या पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दे रहे हैं। भूषण ने कहा, ‘मैं पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दे रहा हूं।’ इसके साथ ही उन्होंने इस मुद्दे को रेखांकित करने के लिए कई कानूनों का जिक्र किया कि जमानत दिए जाते समय विभिन्न प्रासंगिक सामग्री के साथ ही आरोपी के आपराधिक अतीत पर भी विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जमानत पर रिहा राजद नेता के खिलाफ लंबित मामलों में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है क्योंकि गवाह और लोग बयान देने में भय महसूस करेंगे।
भूषण ने कहा कि बिहार के एक अन्य विवादित नेता पप्पू यादव से जुड़े मामले में उच्चतम न्यायालय ने दिशानिर्देश दिया था और जमानत देते समय उच्च न्यायालय को उसका पालन करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि विवादित नेता को मिली राहत इस अदालत द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के खिलाफ है। वकील ने शहाबुद्दीन को ऐसा ‘क्लास.ए हिस्ट्री शीटर’ करार दिया जिसे सुधारा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को शहाबुद्दीन को जमानत नहीं देना चाहिए था।