शहाबुद्दीन की जेल से रिहाई के खिलाफ आज सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

mohammad-shahabuddin

शहाबुद्दीन की जेल से रिहाई के खिलाफ दायर अर्जियों पर उच्चतम न्यायालय अपना फैसला सुनाएगा.एक हत्याकांड में पटना उच्च न्यायालय की ओर से शहाबुद्दीन को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली दो अपीलों पर न्यायालय ने आज अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.पटना उच्च न्यायालय सहित विभिन्न अदालतों में शहाबुद्दीन के खिलाफ चल रहे मुकदमों में उसकी जमानत के विरोध पर लचर रवैया अपनाने को लेकर शीर्ष न्यायालय ने नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार को जमकर लताड़ लगाई.

गौरतलब है कि बिहार के सत्ताधारी गठबंधन में राजद प्रमुख साझेदार है.अपीलों पर सुनवाई की शुरूआत के बाद से ही न्यायालय के सख्त रूख का सामना कर रही बिहार सरकार से आज फिर सवाल किया गया कि राजीव रोशन हत्याकांड के 17 महीने बाद भी शहाबुद्दीन को आरोप-पत्र की प्रति क्यों नहीं मुहैया कराई गई.अपने दो छोटे भाइयों की हत्या के चश्मदीद गवाह रहे राजीव की हत्या अदालत में उनकी गवाही से कुछ ही दिनों पहले कर दी गई थी.

  

करीब तीन दिनों तक सभी पक्षों को सुनने वाली न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने निचली अदालत के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि वह उन अदालतों में पेश आए अलग-अलग वाकयों से निकाले गए निष्कर्षों के आधार पर फैसला नहीं कर सकती, क्योंकि ऑर्डर शीट से पता चला है कि आरोपी को पुलिस रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराया गया था.

पीठ ने कहा हमें रिकॉर्ड के हिसाब से काम करना है. हमारा काम दुष्कर है. यह कैसा अभियोजन है कि निचली अदालत डेढ़ साल तक कहती रही कि पुलिस रिकॉर्ड मुहैया कराया जाए. आप (सरकार) नहीं कह सकते कि कार्यवाहियों में अभियोजन की कोई भूमिका नहीं होती. यह एकतरफा मामला नहीं हो सकता.राज्य सरकार के जवाब से असंतुष्ट पीठ ने कहा ऐसा नहीं है कि हम निचली अदालत की कार्यवाहियों को नहीं समझते.

दो अलग-अलग अपराधों में अपने तीन बेटों को गंवा चुके चंद्रकेश्वर प्रसाद की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने शहाबुद्दीन की इस दलील का पुरजोर विरोध किया कि उसे निचली अदालत में दाखिल किए जाने के 17 महीने बाद तक आरोप-पत्र सहित केस रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराए गए.प्रशांत ने कहा यह गढ़ी हुई कहानी है जो उच्चतम न्यायालय में पहली बार कही गई है, वह भी मौखिक तौर पर बगैर किसी हलफनामे के. उन्होंने कहा कि शहाबुद्दीन ने सत्र अदालत में अपराध पर संज्ञान लिए जाने के बाद निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी. 

प्रशांत ने कहा कि ऐसी तो कोई कानाफूसी भी नहीं थी कि शहाबुद्दीन को आरोप-पत्र की प्रति नहीं मुहैया कराई गई. उन्होंने यह भी कहा कि राजद नेता की पुनर्विचार याचिका में आरोप-पत्र का ब्योरा था और इसलिए रिकॉर्ड नहीं मुहैया कराए जाने की दलीलें टिकने लायक नहीं हैं और इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए.प्रशांत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें इस साल फरवरी में शहाबुद्दीन की जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी, और कहा कि उसमें भी शहाबुद्दीन ने आरोप-पत्र के ब्योरे दिए थे.

उन्होंने कहा इससे शीशे की तरह साफ हो जाता है कि शहाबुद्दीन के पास आरोप-पत्र और केस डायरी थी, नहीं तो उसने आरोप-पत्र में लिखी बातों का हवाला कैसे दिया था.शहाबुद्दीन की तरफ से पेश हुए वकील शेखर नफाड़े ने कहा कि ट्रायल में देरी की कोशिश जानबूझकर की जा रही थी और इसी वजह से उसे आरोप-पत्र मुहैया नहीं कराया गया. इसके अलावा, नफाड़े ने कहा कि अभियोजन के पास यह साबित करने का कोई सबूत नहीं है कि हत्या की साजिश में शहाबुद्दीन शामिल था. 

नफाड़े ने कहा यह दुराग्रह है. आरोप यह है कि राजीव रोशन की हत्या में मैं शामिल था, लेकिन मैं यह कैसे कर सकता हूं जब सबूत कह रहे हैं कि मैं तो न्यायिक हिरासत में था. उन्होंने कहा कि इस आरोप पर रूख स्पष्ट करने का जिम्मा बिहार सरकार पर है कि एक विचाराधीन कैदी जेल से बाहर गया और हत्या में शामिल हुआ.

वरिष्ठ वकील ने आरोप लगाया कि शहाबुद्दीन को सीवान से भागलपुर जेल भेजना ट्रायल में देरी की एक और कोशिश थी. उन्होंने कहा कि शहाबुद्दीन को भागलपुर जेल भेजने का प्रशासनिक आदेश अवैध और गैर-कानूनी था.उन्होंने कहा मुझे स्पीडी ट्रायल का मौलिक अधिकार प्राप्त है लेकिन मुझे किसी और जेल में भेजकर उन्होंने इसमें देरी करने की जानबूझकर कोशिश की थी.

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