उच्चतम न्यायालय ने प्रोफेसर जीएन साईबाबा को सोमवार को जमानत दे दी.उन्हें कथित माओवादी संपर्कों को लेकर गिरफ्तार किया गया था और उनपर मुकदमा चल रहा है. शीर्ष अदालत का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार उनके प्रति अत्यंत अन्यायपूर्ण रही है.न्यायमूर्ति जेएस खेहर और न्यायमूर्ति सी. नागप्पन की पीठ ने साईबाबा की जमानत अर्जी का विरोध करने पर महाराष्ट्र के वकील से भी नाराजगी जताई. पीठ ने कहा, ‘आप आरोपी के प्रति, खासतौर पर उनकी चिकित्सकीय स्थिति देखें तो अत्यंत अन्यायपूर्ण रहे हैं.
अगर महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ कर ली गई है तो उन्हें जेल में रखने का कोई मतलब नहीं है.’ महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष के कुछ अहम गवाहों से पूछताछ होना जरूरी है. हालांकि पीठ ने इस दलील से इत्तेफाक नहीं जताया और व्हीलचेयर पर चलने वाले डीयू प्रोफेसर को जमानत दे दी, जो नागपुर जेल में बंद हैं.
29 फरवरी को इसी पीठ ने कहा था कि निचली अदालत द्वारा प्रमुख गवाहों से पूछताछ के बाद वह साईबाबा को जमानत देने पर विचार कर सकती है. शीर्ष अदालत ने मामले में दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई का निर्देश दिया था. पीठ ने कहा था कि अभियोजन पक्ष ने जिन कुल 34 गवाहों का उल्लेख किया है, उनमें से आठ से अब भी पूछताछ नहीं हुई है. इससे पहले, अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से जेल में बंद प्रोफेसर को रखने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था देखने को कहा था.
पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि साईबाबा को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं दी जाएं. इससे पहले लेखिका अरुंधति रॉय की अर्जी पर शीर्ष अदालत ने उनके खिलाफ एक लेख के लिए बंबई उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक आपराधिक अवमानना नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.